राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ध्वज — “भगवा ध्वज” का इतिहास, महत्व और विवाद

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Rashtriya Swayamsevak Sangh Flag Bhagwa Dhwaj– राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के ध्वज को संघ परिवार और स्वयंसेवकों के बीच विशेष सम्मान प्राप्त है। इसे “भगवा ध्वज” कहा जाता है, जो त्याग, बलिदान और भारतीय संस्कृति की महान परंपरा का प्रतीक माना जाता है। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में संगठन की स्थापना के साथ ही इस ध्वज को संघ के आदर्श और प्रेरणा का प्रतीक स्वीकार किया था।

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ध्वज का स्वरूप और प्रतीक

संघ का ध्वज प्रारंभ से ही भगवा रंग का रहा है। यह आयताकार कपड़े से बना होता है और इसमें कोई चिन्ह या प्रतीक अंकित नहीं होता। केवल भगवा रंग अपने आप में गहरी सांस्कृतिक धरोहर का संदेश देता है। भगवा रंग भारतीय परंपरा में संन्यास, त्याग, शौर्य और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।

संघ की शाखाओं में ध्वज को ‘गुरुस्थान’ पर स्थापित किया जाता है और स्वयंसेवक उसे वंदन करते हैं। संघ के अनुसार, यह ध्वज किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि समग्र भारतीय संस्कृति और आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

जब 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना हुई, तब से ही भगवा ध्वज को संगठन की आत्मा के रूप में माना गया। डॉ. हेडगेवार और उनके सहयोगियों का मानना था कि यह ध्वज भारतीय समाज को एकता, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा देता है। संघ की परंपरा रही है कि ध्वज को “गुरु” का स्थान दिया जाता है।

ध्वज पूजन और संघ परंपरा

संघ की शाखाओं में प्रतिदिन शाखा प्रारंभ और समाप्ति पर ध्वज वंदन किया जाता है। विशेष अवसरों पर “ध्वज पूजन” का आयोजन होता है। स्वयंसेवकों का मानना है कि यह ध्वज उनके जीवन में अनुशासन, आत्मसंयम और राष्ट्र सेवा की प्रेरणा जगाता है।

आधुनिक संदर्भ

आज संघ का ध्वज केवल शाखाओं में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में भी सम्मानपूर्वक फहराया जाता है। संघ की शताब्दी (RSS@100) नजदीक आने के साथ ही ध्वज की महत्ता और अधिक बढ़ गई है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भगवा ध्वज केवल एक संगठन का प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, त्याग और राष्ट्रभक्ति का जीवंत चिह्न है। यह ध्वज संघ और उसके स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बना हुआ है।

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