गुरु नानक देव जी से जुड़े रोचक तथ्य: जीवन, यात्राएँ और अद्भुत चमत्कार

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गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev Ji), सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरु, का जीवन चमत्कारों, गहन दर्शन और मानवता के प्रति अटूट प्रेम से भरा रहा है। उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है।

श्री गुरु नानकदेव जी एक महान समाज सुधारक और राष्ट्रवादी गुरू थे। उनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा को सम्वत 1526 (सन 1469) को राय-भोए-दी तलवण्डी वर्तमान में शेखुपुरा (पाकिस्तान) ननकाना साहिब के नामक प्रसिद्ध स्थान पर हुआ था।

श्री गुरु नानकदेव जी की दिव्य आध्यात्मिक यात्राओं को उदासी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक जी दुनिया के दूसरे सबसे अधिक यात्रा करने वाले व्यक्ति हैं। उनकी अधिकांश यात्राएँ उनके साथी भाई मर्दाना जी के साथ पैदल ही की गई थीं।

श्री गुरु नानकदेव जी ने सभी चार दिशाओं – उत्तर, पूर्व, पश्चिम की यात्राओं को एक अभिलेख के रूप में जाता है। वैसे ऐसे भी अभिलेख हैं जो इस बात का संकेत करते है कि गुरु नानकदेव जी ने सबसे अधिक यात्राएं की थी।

श्री गुरु नानकदेव जी ने 1500 से 1524 की अवधि के मध्य दुनिया की अपनी पांच प्रमुख यात्राओं में 28,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की थी

तुर्की में गुरु नानकदेव जी के स्मारक पर अरबी/फ़ारसी/तुर्की भाषाओं मे लिखी गई है जिसका पंजाबी में अर्थ है : जमाने दा मालिक, हिन्द दा बंदा, रब दा नानक. जिसका हिन्दी मे अर्थ है आज के भगवान, भारत के निवासी, भगवान के आदमी नानक।

इराक के अस्थायी और आध्यात्मिक नेता, पीर बहलोल शाह ने गुरु नानकदेव जी को पीर दस्तगीर और अब्दुल कादिर गिलानी कहकर पुकारा, क्योंकि उन्हे समझ मे आ गया कि गुरु नानकदेव जी हिंद (भारत) के लिए एक पवित्र और सिद्ध संत थे और उन्होने गुरु नानकदेव जी को आध्यात्मिक चर्चा के लिए आमंत्रित किया।

‘सतिगुरु नानकु प्रगटिआ मिटि धुंधु जग चानणु होआ।’ यानि उनके आने से संसार से अज्ञान की धुंध समाप्त होकर ज्ञान का प्रकाश फैला।-भाई गुरदास

संति संग लै चडि़ओ सिकार,
मिरग पकरे बिन घोर हथिआर।।
अर्थात गुरु नानकदेव जी सत्संगत के हथियार लेकर शिकार करने निकले है और मृग रूपी प्राणियों सहज में ही घेर लेते है। – गुरु अर्जन देव जी

गुरु नानकदेव ने देश और विश्व के भिन्न-भिन्न धार्मिक स्थानों का प्रवास किया जिसे उदासी के रूप में जाना जाता है। कुरूक्षेत्र, हरिद्वार,जोशीमठ, रीठा साहिब, नानक मत्ता, अयोध्या, प्रयाग, वाराणसी, गया, पटना,गुवाहटी, ढाका, पुरी, कटक, बिदर, और अजमेर आदि का प्रवास किया।

गुरू नानकदेव जी ने मुस्लिम धार्मिक स्थलों के भी दर्शन किये। वे मक्का, मदीना,बगदाद, मुल्तान, पेशावर सक्खर, हिंगलाज आदि भी गये।

गुरु नानकदेव जी की उदासियों का मुख्य उद्देश्य लोगों में ईश्वर की सच्चाई के प्रति जागरूकता पैदा करना था। उन्होने सिख धर्म के विभिन्न उपदेश केन्द्रों की स्थापना की। सिख विचार का बीजारोपण निश्चित ही भारत में हुआ, लेकिन इसका प्रभाव वैश्विक है।

1520 में बाबर ने भारत पर आक्रमण किया। धार्मिक स्थल तोड़े | नगर के नगर उजाड़े, हजारों बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतारा। महिलाओं पर अत्याचार किए। गुरू नानकदेव जी ने बाबर के इन कृत्यों का विरोध बड़े ही कड़े शब्दों में किया।

गुरू नानकदेव जी ने स्वयं को एक राष्ट्रवादी के रूप में प्रस्तुत किया । मुगलों व बाबर के विरुद्ध विरोध का बिगुल गुरु नानकदेव जी ने फूंका बाबर द्वारा उन्हें गिरफ्तार किया गया भारतीय इतिहास की दृष्टि से स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रारम्भ है।

गुरू नानकदेव ने करतारपुर (पाकिस्तान में) को 1522 में बसाया और अपना शेष जीवन (1539 तक) वहीं पर बिताया। वहां प्रतिदिन कीर्तन एवं लंगर की प्रथा का शुभारम्भ किया।

जब गुरूनानक देव ने देखा कि उनका अंत समय आ गया है तो उन्होंने भाई लहणा (गुरू अंगद देव) को द्वितीय नानक के रूप में 1539 को स्थापित किया एवं कुछ दिनों के पश्चात 22 नवम्बर 1539 को ज्योति जोत में समा गये।

गुरू नानकदेव जी ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया व गृहस्थ जीवन में रहते हुए आध्यात्मिक व सामाजिक जीवन जीने की कला समझायी। गुरू नानक जी द्वारा स्थापित सिख जीवन दर्शन का गुरू नानकदेव जी ने एक नये तरीके से सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सच्चे ईश्वर-अकाल पुरख के प्रवचन दिये।

ईश्वर निरंकार है, ईश्वर आत्मा है, रचयिता है, अविस्मरणीय है, जन्म-मृत्यु से परे हैं, कालविहीन है, काल निरपेक्ष है, भयरहित है एवं करता पुरख है। वो सतनाम है, कभी न खत्म होने वाला, सदैव सत्य है। – गुरु नानकदेव जी

समाज सुधारक के रूप में गुरू नानकदेव जी ने महिलाओं की स्थिति, गरीबों एवं, दलितों की दशा को सुधारने के लिए कार्य किये। उन्होंने जाति प्रथा एवं मुस्लिम शासकों की नीतियों का विरोध किया।

गुरू नानकदेव जी जन्म से ही एक काव्यकार थे। उन्होंने 947 शबदों की रचना की। उनकी बाणियों में जपुजी साहिब, आसा दी वार, बारामाह, सिद्धगोष्ठी, ओंकार दखणी आदि सम्मिलित हैं एवं गुरुनानक देव जी की बाणी श्री गुरूग्रंथ साहिब में अंकित हैं।

संगीत गुरू नानकदेव जी की सृजनात्मक शक्ति का परिचायक बना। उन्होने भाई मरदाना के साथ मिलकर भारतीय शास्त्रीय रागों पर आधारित शबद गायन प्रणाली का विकास किया। वो एक सुधारक के साथ-साथ क्रान्तिकारी भी थे।

गुरु नानकदेव जी ने एक ऐसे जाति-पाति विहीन तथा वर्ग रहित समाज के निर्माण पर ध्यान दिया जिसमें लूट खसूट नहीं थी और सभी को समान समझा जाता था। श्री गुरु नानक देव जी ने लोगों को भ्रातृभाव से रहने को प्रेरित किया। – गोपीचंद नारंग, प्रसिद्ध विद्वान

गुरु नानकदेव जी के सिद्धांत भ्रातृभाव वाले व मानवतावादी थे। – डा. के.ए. निजामी (प्रसिद्ध इतिहासकार व राजनयिक)

अहंकार का त्याग किए बिना समता का भाव पैदा नहीं हो सकता – गुरु नानकदेव जी

“उन दीवारों को तोड़ दो जिनकी बुनियाद झूठे भ्रमों पर आधारित है और ऐसे पुलों का निर्माण करो, जो एक इंसान को दूसरे इंसान से जोड़ते है” – श्री गुरु नानकदेव जी

गुरु नानकदेव जी ने समाज को जागरूक करने के लिए हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, पुष्कर, सोमनाथ, रामेश्वरम, दिल्ली, मुल्तान आदि यात्राएं की |

गुरु नानकदेव जी नारी के प्रति असीम आदर प्रकट करते हुए कहते थे ‘सो क्या मंदा जानिए,

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