ताजमहल परिसर में शिव तांडव स्तोत्र पाठ कर ‘बाल विदुषी लक्ष्मी’ ने छेड़ा नया विवाद

आगरा के ताजमहल में बाल विदुषी लक्ष्मी द्वारा शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने का वीडियो वायरल। ASI नियमों के उल्लंघन और 'द ताज स्टोरी' फिल्म के समर्थन में तेजोमहालय विवाद फिर गरमाया। जानें सुरक्षा पर उठे सवाल और घटना का पूरा ब्यौरा।

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विश्व प्रसिद्ध ताजमहल एक बार फिर धार्मिक और ऐतिहासिक विवादों के केंद्र में आ गया है। हाल ही में, कथावाचक बाल विदुषी लक्ष्मी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हुआ है, जिसमें वह ताजमहल परिसर के अंदर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करती नजर आ रही हैं। इस कृत्य ने न केवल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के नियमों का उल्लंघन किया है, बल्कि ‘तेजोमहालय’ विवाद को भी हवा दे दी है।


विवाद की जड़: ‘ताजमहल नहीं, तेजोमहालय है’

बाल विदुषी लक्ष्मी ने यह वीडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया है। वीडियो में वह यह दावा करते हुए नज़र आ रही हैं कि “यह ताजमहल नहीं, तेजोमहालय है।” उन्होंने इसे भोलेनाथ की कृपा माना कि उन्हें पहली बार “तेजोमहालय के दर्शन” करने का अवसर मिला।

  • फिल्म से जुड़ाव: यह वीडियो अभिनेता परेश रावल की आगामी फिल्म “द ताज स्टोरी” के समर्थन में बनाया गया है। यह फिल्म 31 अक्टूबर 2025 को रिलीज़ होने वाली है और इसका केंद्रीय दावा यही है कि ताजमहल मूल रूप से एक प्राचीन हिंदू मंदिर (तेजोमहालय) था।
  • नियमों का उल्लंघन: ASI के नियमों के अनुसार, किसी भी संरक्षित स्मारक परिसर के अंदर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ या प्रदर्शनात्मक वीडियो शूटिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। ताजमहल जैसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना नियम विरुद्ध माना गया है।

सुरक्षा पर उठे गंभीर सवाल

वीडियो वायरल होने के बाद ताजमहल की सुरक्षा व्यवस्था और एएसआई प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठ गए हैं। यह जाँच की जा रही है कि सीआईएसएफ (CISF) की कड़ी निगरानी के बावजूद यह वीडियो परिसर के अंदर कैसे रिकॉर्ड किया गया। सुरक्षा कर्मियों से भी इस मामले में जवाब तलब किया गया है।

लक्ष्मी भारद्वाज नामक इस कथावाचक (उम्र लगभग 15 वर्ष) के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे ‘असली इतिहास का संदेश’ बताकर समर्थन कर रहे हैं, वहीं पुरातत्वविद और कानूनविद इसे विरासत स्थल के नियमों की खुली अनदेखी मान रहे हैं।

यह घटना दर्शाती है कि ऐतिहासिक स्मारकों से जुड़े विवाद किस तरह सोशल मीडिया के माध्यम से तेज़ी से राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन जाते हैं।

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