प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में शरीर के शोधन और रोगों के निवारण के लिए पंचकर्म (Panchakarma) चिकित्सा का विशेष स्थान है। इन पाँच कर्मों में बस्तीकर्म (Basti Karma) को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे ‘अर्ध चिकित्सा’ (Half Treatment) यानी ‘आधा उपचार’ की संज्ञा दी गई है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से शरीर में से विषाक्त पदार्थों (toxins) को निकालने और तीन प्रमुख दोषों—वात, पित्त और कफ—को संतुलित करने पर केंद्रित है।
बस्तीकर्म क्या है? व्युत्पत्ति और उद्देश्य
बस्ती शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘मूत्राशय की थैली’ (Urinary Bladder Bag) होता है।
- अतीत की प्रक्रिया: अतीत में, इस चिकित्सा को करने के लिए बकरियों या अन्य जानवरों के मूत्राशय की थैलियों (Urinary Bladder of Animals) का उपयोग औषधियों को शरीर के अंदर डालने के लिए किया जाता था, जिसके कारण इस प्रक्रिया का नाम बस्ती पड़ा।
- आधुनिक पद्धति: वर्तमान में, यह प्रक्रिया चिकित्सा विशेषज्ञों की देखरेख में आधुनिक उपकरणों और रबर ट्यूबों (rubber tubes) का उपयोग करके सुरक्षित ढंग से की जाती है।
- मुख्य उद्देश्य: आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त और कफ में से वात दोष मुख्य रूप से बड़ी आंत (Large Intestine) में स्थित होता है। बस्तीकर्म में, मलाशय (rectum) के माध्यम से औषधियों को सीधे बड़ी आंत में पहुँचाया जाता है। वात का स्थान होने के कारण, बस्ती वात को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
कार्यप्रणाली और ‘अर्ध चिकित्सा’ का महत्व
बस्तीकर्म की प्रक्रिया शरीर में प्रवेश करने के बाद अद्भुत ढंग से कार्य करती है।
- वात का शमन: मलाशय के माध्यम से बड़ी आंत में दवाओं को डालने से पेट फूलना (flatulence) और वात से संबंधित अन्य विकार तुरंत कम हो जाते हैं।
- शोधन क्रिया: औषधियाँ अपनी शक्ति से पूरे शरीर में फैल जाती हैं और अन्य दूरस्थ अंगों (remote organs) से अशुद्धियों (impurities) और विषाक्त पदार्थों को खींचकर उन्हें नीचे लाती हैं।
- मल निष्कासन: यह बड़ी आंत में जमा मल (feces) को हटा देता है और पूरे शरीर के शोधन में सहायता करता है।
इसी व्यापक प्रभाव और शरीर के अधिकांश रोगों पर नियंत्रण करने की क्षमता के कारण, बस्ती को अर्ध चिकित्सा (Half Treatment) कहा जाता है। आयुर्वेद में यह माना जाता है कि यदि वात दोष को नियंत्रित कर लिया जाए, तो शरीर के आधे से अधिक रोग स्वतः ही नियंत्रित हो जाते हैं।
बस्तीकर्म की विस्तृत प्रक्रिया
बस्तीकर्म एक चरणबद्ध प्रक्रिया है जो रोगी की अधिकतम सुविधा और औषधियों के अधिकतम अवशोषण को सुनिश्चित करती है:
- पूर्व तैयारी (Pre-procedure): बस्तीकर्म से पहले रोगी के पेट, कमर, जांघों और नितंबों आदि पर तिल के तेल (Sesame Oil) या अन्य औषधीय तेलों से हल्के हाथों से मालिश (Abhyanga) की जाती है।
- स्वेदन (Sudation/Fomentation): मालिश के बाद, सभी अंगों की भाप से सेंकाई (Swedana) की जाती है, ताकि रोम छिद्र खुल जाएँ और शरीर दवा को ग्रहण करने के लिए तैयार हो जाए।
- औषधि प्रवेश (Administration): रोगी को बिस्तर के बाईं ओर (Left Lateral Position), बाएं करवट लिटाया जाता है। आराम के लिए दाहिने पैर को पेट तक मोड़ा जाता है। यह स्थिति मलाशय और बड़ी आंत में औषधियों के सही प्रवाह के लिए आदर्श मानी जाती है।
- प्रवेश मार्ग: फिर एक रबर ट्यूब या विशेष बस्ती यंत्र को तेल या स्नेहक (lubricant) के साथ रोगी के मलाशय में धीरे से डाला जाता है, और इसके सहारे औषधियों को बड़ी आंत में सावधानीपूर्वक पहुँचाया जाता है।
बस्तीकर्म के लिए कई प्रकार की औषधियों का उपयोग किया जाता है, जैसे स्नेह बस्ती (तेल आधारित) और काढ़ा बस्ती (हर्बल काढ़ा आधारित), जिसका चयन रोगी की प्रकृति और रोग के अनुसार किया जाता है। यह प्रक्रिया आज भी विभिन्न जीर्ण (chronic) और तंत्रिका संबंधी (neurological) रोगों के उपचार में अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।

