Facts About Architecture & Art of Rajasthan in Hindi: राजस्थान बोर्ड कक्षा 10 के पाठ्यक्रम पर आधारित, यह पोस्ट राजस्थान की स्थापत्य और शिल्पकला के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है, जिसमें दुर्ग, मंदिर, हवेलियाँ, छतरियाँ, बावड़ियाँ और अन्य स्मारक शामिल हैं। यह पोस्ट राजस्थान की ऐतिहासिक और स्थापत्य विरासत को संक्षिप्त और महत्वपूर्ण तथ्यों के माध्यम से प्रस्तुत करती है।
- जयपुर शहर की नींव (1726) राजगुरू प. जगन्नाथ सम्राट द्वारा रखी गई थी।
- पृथ्वीराज विजयकाव्य में अजमेर की तुलना इन्द्रपुरी से की गई है।
- शुक्रनीति के अनुसार राज्य के 7 अंग माने गए हैं।
- राजस्थान में दुर्ग स्थापत्य का सबसे प्राचीनतम इतिहास कालीबंगा से प्राप्त होता है।
- अचलगढ़ दुर्ग का पुननिर्माण राणा कुम्भा ने करवाया।
- यूनेस्को द्वारा जून 2013 तक राजस्थान के 6 दुर्गों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
- राजस्थान में स्थिति, स्थापत्य व उपयोगिता के आधार पर 9 प्रकार के दुर्ग पाए जाते हैं।
- चारों तरफ विशाल जलराशि से घिरे हुए दुर्ग जल/औदुक दुर्ग कहलाते हैं।
- किसी ऊँचे पर्वत पर स्थित दुर्ग गिरि दुर्ग की श्रेणी में आते हैं।
- मरुभूमि में बना दुर्ग धान्वन दुर्ग कहलाता है।
- सघन बीहड़ वन में बने दुर्ग वन दुर्ग की श्रेणी में आते हैं।
- वे दुर्ग जिनका मार्ग काँटों, खाई व पत्थरों से दुर्गम बना हो, एरण दुर्ग कहलाते हैं।
- वे दुर्ग जिनके चारों ओर खाई हो, पारिख दुर्ग कहलाते हैं।
- परकोटे से घिरे दुर्ग पारिध दुर्ग की श्रेणी में आते हैं।
- वे दुर्ग जिनके चारों ओर सेना की व्यूह रचना हो, सैन्य दुर्ग की श्रेणी में आते हैं।
- जिस दुर्ग में शूरवीर एवं बान्धव साथ रहते हों, वह सहाय दुर्ग की श्रेणी में आता है।
- चित्तौड़ को राजस्थान का गौरव कहा जाता है।
- इतिहासकार वीरविनोद ने चित्तौड़गढ़ का निर्माता चित्रांग (चित्रांगद) मौर्य को बताया है।
- चित्तौड़ के किले का प्राचीन नाम चित्रकोट था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले को जीतकर इसका नाम खिजाबाद रखा।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग मेसा का पठार पर स्थित है।
- चित्तौड़ के किले में इतिहास के 3 प्रसिद्ध साके हुए हैं।
- चित्तौड़ का पहला साका रावल रतनसिंह (1303) के काल में हुआ।
- चित्तौड़ का दूसरा साका बहादुर शाह (1534) के आक्रमण से हुआ।
- चित्तौड़ का तीसरा साका उदयसिंह (1567) के काल में हुआ।
- चित्तौड़ दुर्ग के 7 द्वार हैं।
- कटारगढ़ कुंभलगढ़ दुर्ग का एक भाग है।
- कुंभलगढ़ को मेवाड़ की आँख कहा जाता है।
- कुंभलगढ़ दुर्ग 36 कि.मी. लंबी दीवार के परकोटे से घिरा हुआ है।
- कर्नल टॉड ने कुंभलगढ़ की तुलना एट्रस्कन वास्तु से की है।
- कुंभलगढ़ दुर्ग का मुख्य शिल्पी मण्डन था।
- अबुल फजल ने कुंभलगढ़ दुर्ग के बारे में कहा है कि “नीचे से देखने पर सिर की पगड़ी गिर जाती है”।
- रणथंभौर दुर्ग को रणथान देव चौहान ने बनवाया था।
- रणथंभौर दुर्ग को अबुल फजल ने बख्तरबंद दुर्ग कहा है।
- पीर सदरूद्दीन की दरगाह रणथंभौर दुर्ग में है।
- सिवाना दुर्ग छप्पन का पहाड़ पर स्थित है।
- सिवाना दुर्ग की स्थापना वीरनारायण परमार (354) ने की।
- अलाउद्दीन खिलजी ने शतलदेव को हराकर सिवाना दुर्ग पर अधिकार किया।
- राणा लाखा ने मिट्टी का काल्पनिक बूंदी दुर्ग बनाकर उसे विजय कर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।
- मिट्टी के नकली बूंदी दुर्ग की रक्षा में कुम्भा हाड़ा ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी।
- गर्भ गुंजन तोप तारागढ़, बूंदी किले में स्थित है।
- नाहरगढ़ किला सुदर्शनगढ़ के नाम से जाना जाता है।
- नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माता सवाई जयसिंह था।
- माधो सिंह ने अपनी नौ पासवनों के लिए नौ एक समान महल नाहरगढ़ में बनवाए थे।
- गढ़ बीठली तारागढ़ अजमेर दुर्ग को कहा जाता है।
- अजमेर के गढ़ बीठली का निर्माण अजयपाल ने करवाया।
- विलियम बेंटिक ने तारागढ़ अजमेर को दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर कहा है।
- मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण राव जोधा (1459) द्वारा करवाया गया।
- मेहरानगढ़ को मयूरध्वज व गढ़चिंतामणि के नाम से भी जाना जाता है।
- किलकिला, शंभुबाण, गजनीखान, बिच्छु बाण आदि तोपें मेहरानगढ़ किले में हैं।
- चूरू किले का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह (1739) ने करवाया।
- 1857 के विद्रोह में ठाकुर शिवसिंह के नेतृत्व में चूरू के किले से चांदी के गोले अंग्रेज व बीकानेर की सेना पर बरसाए गए।
- अकबर का दौलतखाना/अकबर का मैगजीन नामक किला अजमेर में है।
- ब्रिटिश राजदूत टॉमस रो ने जहाँगीर से सर्वप्रथम मुलाकात मैगजीन का किला, अजमेर में की थी।
- अजमेर में स्थित अकबर के दौलतखाना दुर्ग को अंग्रेजों ने 1801 में जीता।
- जूनागढ़ दुर्ग बीकानेर में है।
- भैंसरोड़गढ़ का किला चित्तौड़गढ़ में है।
- भैंसरोड़गढ़ को राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है।
- गागरोन दुर्ग का प्राचीन नाम डोडगढ़ या धूलरगढ़ है।
- संत मिढे साहब की दरगाह गागरोन दुर्ग में है।
- संत पीपा की गुफा गागरोन दुर्ग में है।
- गागरोन दुर्ग झालावाड़ में स्थित है।
- एशिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण जयगढ़ (आमेर) किले में स्थित है।
- जयगढ़ को रहस्यमय दुर्ग कहा जाता है।
- जालौर का किला सूकड़ी नदी के किनारे स्थित है।
- शिलालेखों में जालौर के किले को सुवर्णगिरि कहा गया है।
- सोनार का किला त्रिकुट पहाड़ी, जैसलमेर पर स्थित है।
- परमार शासक भोज द्वारा सुवर्णगिरि, जालौर में संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया गया।
- सोनार का किला, जैसलमेर के बारे में कहा गया है कि यहाँ पत्थर के पैर, लोहे का शरीर व काठ का घोड़ा होने पर ही पहुँचा जा सकता है।
- सोनार दुर्ग की तुलना पहाड़ी पर लंगर डाले हुए जहाज के समान की गई है।
- राजस्थान का लोहागढ़, भरतपुर किला अपनी अजेयता के लिए प्रसिद्ध है।
- लोहागढ़ का किला सूरजमल ने बनवाया।
- अष्टधातु का द्वार लोहागढ़ किले की विशेषता है।
- 1765 में ज्वाहर सिंह अष्टधातु का द्वार दिल्ली से जीतकर लाए थे।
- लोहागढ़ के किले के चारों ओर खाई में मोती झील से पानी भरा जाता था।
- लार्ड लेक नामक अंग्रेज जनरल ने लोहागढ़ पर पाँच बार चढ़ाई की, परन्तु सफल नहीं हो सका।
- मोती गंगा झील में पानी की व्यवस्था सुजानगंगा नहर से की जाती थी।
- वजीर की कोठी, दादी माँ का महल, गंगा मंदिर लोहागढ़ किले में हैं।
- मंदिर निर्माण की महामारू शैली का विकास राजस्थान में आठवीं सदी से माना जाता है।
- राजस्थान की क्षेत्रीय मंदिर निर्माण शैली गुर्जर प्रतिहार अथवा महामारू के नाम से जानी जाती है।
- सच्चियां माता का मंदिर ओसियां, जोधपुर में स्थित है।
- गुर्जर प्रतिहार शैली का अंतिम प्रसिद्ध मंदिर किराडू का सोमेश्वर महादेव (1016) है।
- राजस्थान में मंदिर शिल्प कला का स्वर्णकाल 11वीं से 13वीं सदी को माना जाता है।
- ओसियां का सच्चियां माता मंदिर सोलंकी या मारू गुर्जर शैली का मंदिर है।
- राजस्थान में भूमिज शैली का सबसे प्राचीन मंदिर सेवाड़ी जैन मंदिर, पाली (1010-20) है।
- एकलिंग जी के मंदिर को वर्तमान स्वरूप रायल ने प्रदान किया।
- किराडू के मंदिर का प्राचीन नाम किराट कूप था।
- किराडू का मंदिर हाथमा गाँव, बाड़मेर में स्थित है।
- किराडू मंदिर को राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है।
- जगतशिरोमणि मंदिर (आमेर) मानसिंह की पत्री कंकावती ने बनवाया था।
- देलवाड़ा में ऋषभदेव को समर्पित जैन मंदिर (1031) का निर्माण विमलशाह ने करवाया।
- देलवाड़ा में लूणवसाही मंदिर नेमिनाथ को समर्पित है।
- देलवाड़ा के नेमिनाथ को समर्पित जैन मंदिर का निर्माण वास्तुपाल व तेजपाल ने करवाया।
- हर्षतमाता का मंदिर आभानेरी में स्थित है।
- भण्डदेवरा महादेव मंदिर को हाड़ौती का खजुराहो कहा जाता है।
- रणकपुर जैन मंदिर को खंभों का अजायबघर कहा जाता है।
- रणकपुर जैन मंदिर 1444 खंभों पर टिका है।
- हरिहर मंदिर ओसियां में स्थित है।
- सास-बहू का मंदिर नागदा में स्थित है।
- डीग, भरतपुर को जलमहलों की नगरी कहा जाता है।
- पटवों की हवेली, नथमल की हवेली, सालिम सिंह की हवेली जैसलमेर में स्थित हैं।
- बच्छावतों की हवेली, मूंदड़ा हवेली, रामपूरिया हवेली बीकानेर में स्थित हैं।
- सोने-चांदी की हवेली महनसर, झुंझुनूं में स्थित है।
- नाथूराम पोद्दार की हवेली बिसाऊ, झुंझुनूं में स्थित है।
- सुनहरी कोठी टोंक में स्थित है।
- बड़े मियां की हवेली, पोकरण हवेली, राखी हवेली जोधपुर में स्थित हैं।
- मंत्रियों की हवेली, रामनिवास गोयनका की हवेली, मालजी का कमरा आदि चूरू में स्थित हैं।
- बड़ा बाग जैसलमेर में स्थित है।
- जसवंत थड़ा जोधपुर में स्थित है।
- छत्रविलास बाग कोटा में स्थित है।
- मूसी महारानी की छतरी अलवर में है।
- चौरासी खंभों की छतरी बूंदी में स्थित है।
- ईश्वरीसिंह की छतरी गैटोर में स्थित है।
- पालीवालों की छतरियां जैसलमेर में स्थित हैं।
- शक्कर पीर बाबा की दरगाह नरहड़ में स्थित है।
- ख्वाजा फखरूद्दीन का मकबरा सरवाड़ में है।
- बाटाडू कुआं बाड़मेर में स्थित है।
- त्रिमुखी बावड़ी उदयपुर में स्थित है।
- नौलखा बावड़ी डूंगरपुर में स्थित है।
- रानीजी की बावड़ी बूंदी में स्थित है।
- गेबसागर बांध डूंगरपुर में स्थित है।