Gopinathji Mandir Jaipur: चमत्कारी ‘घड़ी वाला’ मंदिर: जहाँ भगवान की घड़ी चलती है पल्स रेट से!

जयपुर (Jaipur) के राधा-गोपीनाथ जी मंदिर (Gopinath Mandir) में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की चमत्कारी मूर्ति की अनोखी कहानी। जानें कैसे पल्स रेट (pulse rate) से चलती है हाथ में बंधी घड़ी और भक्तों की गहरी आस्था (deep faith)।

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क्या आपने कभी सोचा है कि आस्था और विज्ञान (science) एक ही जगह पर, एक ही समय में मिल सकते हैं? राजस्थान के जयपुर (Jaipur) में एक प्राचीन श्रीकृष्ण (Shri Krishna) मंदिर इस बात का जीता-जागता प्रमाण है। यहाँ भगवान की प्रतिमा की कलाई पर बंधी एक साधारण घड़ी उनकी नाड़ी के पल्स रेट (pulse rate) के अनुसार चलती है, और यही इसे दुनिया का सबसे अनोखा चमत्कारी मंदिर (miraculous temple) बनाती है। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि हजारों भक्तों के लिए एक जीवंत अनुभव है।


अविश्वसनीय चमत्कार और अंग्रेज की चुनौती

मंदिर की सबसे प्रसिद्ध कहानी आज से सैकड़ों साल पहले की है। एक अंग्रेज अधिकारी (British officer) ने यह दावा सुनकर चुनौती दी कि अगर प्रतिमा में सचमुच प्राण हैं, तो वह उसकी घड़ी को चलाकर दिखाए। वह एक ऐसी विशेष घड़ी लेकर आया था जो केवल एक जीवित व्यक्ति के शरीर के स्पंदन (vibrations) से चलती थी। कहानी के अनुसार, जब वह घड़ी ठाकुर जी को पहनाई गई, तो वह सचमुच चलने लगी। यह घटना आज भी श्रद्धालुओं के लिए चमत्कार का प्रतीक बनी हुई है, और इसी कारण यह मंदिर ‘घड़ी वाले गोपीनाथ मंदिर’ (Ghadi Wale Gopinath Ji Mandir) के नाम से जाना जाता है।


मंदिर की पौराणिक और ऐतिहासिक जड़ें

इस मंदिर की जड़ें सीधे द्वापर युग (Dwapar Yug) से जुड़ी हैं। महंत सिद्धार्थ गोस्वामी (Siddharth Goswami) बताते हैं कि भगवान की इस पवित्र प्रतिमा को स्वयं उनके पड़पोते वज्रनाभ (Vajranabh) ने बनाया था, ताकि वे अपने पूर्वज के रूप का ध्यान कर सकें। यह प्रतिमा उसी शिलाखंड से बनी है, जिस पर कंस ने श्रीकृष्ण के भाई-बहनों को मारा था। इसी शिलाखंड से तीन और प्रतिमाएं भी बनी थीं— जयपुर के प्रसिद्ध गोविंद देव जी (Govind Dev Ji), करौली के मदन मोहन जी (Madan Mohan Ji), और गोपीनाथ जी की यह अद्वितीय प्रतिमा। तीनों प्रतिमाएं अलग-अलग भावों को दर्शाती हैं, और गोपीनाथ जी की प्रतिमा को सबसे दिव्य माना जाता है।


मंदिर की वास्तुकला और दैनिक दिनचर्या

यह मंदिर सिर्फ अपनी कहानी के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी स्थापत्य कला (architecture) के लिए भी खास है। यह गौरीया संप्रदाय (Gauriya Sampradaya) का एक प्रमुख केंद्र है और यहाँ भगवान की पूजा पुष्टिमार्गीय परंपरा (Pushtimargiya tradition) के अनुसार की जाती है। सुबह की मंगला आरती (Mangala Aarti) से लेकर रात के शयन (Shayan) तक, यहाँ हर रस्म भगवान की सेवा (seva) का हिस्सा होती है।


भक्तों की अटूट आस्था का प्रमाण

इस मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों भक्त दर्शन के लिए आते हैं, जहाँ उनकी अटूट आस्था (unwavering faith) दिखाई देती है। 90 साल की मोहिनी देवी (Mohini Devi) जैसी भक्त की कहानी, जो पिछले 60 सालों (60 years) से रोज मंदिर आती हैं, लोगों के गहरे विश्वास को प्रमाणित करती है। उनकी भक्ति और विश्वास इस बात का प्रमाण है कि इस मंदिर में केवल एक चमत्कार ही नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव भी मौजूद है। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ इतिहास, आस्था और परंपरा एक-दूसरे में घुल-मिल जाते हैं।

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