RSS Pracharak Salary: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक (Pracharaks) का जीवन सामान्य नौकरीपेशा लोगों से बिल्कुल अलग होता है। वे संगठन के लिए पूर्णकालिक (full-time) रूप से कार्य करते हैं और उनकी आर्थिक व्यवस्था को लेकर अक्सर जो जिज्ञासा होती है, उसका जवाब उनके ‘समर्पण के संकल्प’ में निहित है। प्रचारक किसी भी तरह का ‘वेतन’ (Salary) नहीं लेते हैं, बल्कि वे एक विशेष संगठनात्मक व्यवस्था के तहत जीवनयापन करते हैं।
प्रचारक का संकल्प: त्याग और सेवा का जीवन
सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि प्रचारक कौन होते हैं। प्रचारक संगठन के वे कार्यकर्ता होते हैं जो राष्ट्र सेवा और संगठन विस्तार के लिए अपना घर-परिवार छोड़कर अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।
- भेद: संघ में लाखों स्वयंसेवक (Swayamsevaks) हैं जो अपना सामान्य जीवन जीते हुए संगठन को समय देते हैं। इसके विपरीत, प्रचारक एक पूर्णकालिक स्वयंसेवक (full-time volunteer) होते हैं।
- commitment: अधिकांश प्रचारक जीवन भर अविवाहित रहने का संकल्प (ब्रह्मचर्य) लेते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य संघ की विचारधारा और कार्यप्रणाली को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना होता है।
निर्वाह भत्ता: ‘सैलरी’ नहीं, ‘व्यक्तिगत खर्च’
प्रचारकों को मासिक वेतन (salary) नहीं मिलता, बल्कि उनके मूलभूत जीवनयापन के लिए एक निर्वाह भत्ता (Maintenance Allowance) दिया जाता है, जिसे संघ की भाषा में ‘व्यक्तिगत खर्च’ (Vyaktigat Kharch) कहा जाता है।
- उद्देश्य: यह राशि केवल उनके आवश्यक खर्चों जैसे स्थानीय यात्रा, बुनियादी भोजन, दवाइयाँ और कपड़े धोने जैसे दैनिक खर्चों को कवर करने के लिए होती है।
- राशि का निर्धारण: यह भत्ता एक निश्चित वेतन नहीं होता, बल्कि क्षेत्र की महंगाई (cost of living) और प्रचारक की आवश्यकता के अनुसार स्थानीय इकाइयों द्वारा निर्धारित किया जाता है। एक वरिष्ठ प्रचारक का खर्च एक युवा प्रचारक से अलग हो सकता है।
- सामुदायिक आवास: प्रचारक अक्सर ज़िला या विभाग कार्यालयों में सामुदायिक रूप से रहते हैं। उनके आवास और भोजन की व्यवस्था भी संगठन द्वारा की जाती है, जिससे उनका व्यक्तिगत खर्च बहुत कम हो जाता है।
जीवनशैली: प्रवास और अनुशासन
एक प्रचारक का जीवन अत्यधिक अनुशासित (disciplined) और सक्रिय होता है, जिसके लिए उन्हें लगातार संगठन के सहारे की आवश्यकता होती है:
- दैनिक दिनचर्या: प्रचारक की दिनचर्या शाखा से शुरू होती है और फिर बैठकों, यात्राओं, सामाजिक कार्यों और संगठन विस्तार के प्रवास (travel/touring) में बीतती है। उनका अधिकांश समय एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने और कार्यकर्ताओं से संपर्क साधने में व्यतीत होता है।
- सीमित संसाधन: प्रचारक अक्सर न्यूनतम सामानों के साथ जीवन जीते हैं। वे सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं और निजी संपत्ति अर्जित नहीं करते। यह सादगी उन्हें अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है।
वित्तीय आधार: गुरु दक्षिणा का महत्व
प्रचारकों के निर्वाह भत्ते और संगठन के समस्त खर्चों का मुख्य आधार गुरु दक्षिणा की परंपरा है।
- परंपरा: यह एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, जहाँ शिष्य स्वेच्छा से अपने गुरु (संघ में भगवा ध्वज को गुरु माना जाता है) को धन अर्पित करते हैं।
- प्रणाली: स्वयंसेवक हर साल गुप्त रूप से, बिना किसी दबाव के, संघ कोष में दान करते हैं। इसी कोष से प्रचारकों के निर्वाह भत्ते और संगठन के सभी खर्चों का प्रबंधन किया जाता है। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि प्रचारक किसी भी व्यक्तिगत या बाहरी वित्तीय दबाव से मुक्त रहें और उनका पूरा ध्यान सेवा पर बना रहे।
संक्षेप में, RSS प्रचारक का जीवन त्याग, सेवा और संगठनात्मक अनुशासन का एक अनूठा मॉडल है। उनका निर्वाह भत्ता उनके समर्पण की कीमत नहीं, बल्कि उनके कार्य को निर्बाध रूप से जारी रखने के लिए एक बुनियादी व्यवस्था है।