Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) Ke Panch Prant: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में समाज के हर वर्ग तक पहुँचने और ‘जन के जीवन की गुणवत्ता’ पर काम करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए संगठन ने पंच परिवर्तन या पंच प्रण की घोषणा की है, जिनका उद्देश्य समाज के आचरण और जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाना है।

पंच परिवर्तन क्या है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि समाज में स्थायी परिवर्तन लाने के लिए पांच प्रमुख आयामों पर कार्य करना आवश्यक है:
- सामाजिक समरसता
- कुटुंब प्रबोधन
- पर्यावरण संरक्षण
- स्वदेशी आचरण
- नागरिक कर्तव्य
इन पांचों पहलुओं के संतुलित विकास से ही राष्ट्र की प्रगति और समाज का पुनर्निर्माण संभव है।
1. सामाजिक समरसता
सामाजिक समरसता का अर्थ है समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सौहार्द और प्रेम बढ़ाना। उपनिषदों के ‘एकोहं बहुस्याम’ (मैं एक हूँ, मैं अनेक हो जाऊँ) के सिद्धांत पर आधारित, संघ का मानना है कि सभी जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता को समाप्त कर एकता स्थापित की जानी चाहिए। क्योंकि हम सभी ‘वयं अमृतस्य पुत्रा:’ हैं। संघ सामाजिक समरसता के लिए जनमानस में परस्पर प्रेम और सहयोग के प्रति जागरूकता को आवश्यक मानता है, जिसके लिए शिक्षा और संवाद को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
2. कुटुम्ब प्रबोधन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि परिवार राष्ट्र के विकास की मूल इकाई है। भारतीय परिवारों की प्राचीन प्रणाली ने संस्कृति के संरक्षण और प्रसार का कार्य किया है। आज के समय में एकल परिवारों के चलन को रोकने और प्राचीन परिवार परंपरा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। संघ का उद्देश्य ऐसे परिवारों का निर्माण करना है जो न केवल स्वयं खुशहाल हों, बल्कि समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को भी समझें। यह पहल आज के आधुनिक परिवारों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयास करती है, ताकि बच्चों को एक सुखद और संस्कारित वातावरण मिल सके।
3. पर्यावरण संरक्षण
भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को ‘माता भूमि:’ कहकर सर्वोच्च सम्मान दिया गया है। अथर्ववेद का सूत्र ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ (धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं) इसी भावना को दर्शाता है। संघ का मत है कि पर्यावरण की शुचिता और पवित्रता बनाए रखना हमारा संवैधानिक और नैतिक दायित्व है। शताब्दी वर्ष में, संघ पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न तरीकों पर कार्य कर रहा है और समाज को अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने के लिए प्रेरित कर रहा है ताकि हम अपनी ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ (जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं) की भावना को चरितार्थ कर सकें।
4. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता
संघ का ‘पंच-परिवर्तन’ स्वदेशी अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता पर विशेष जोर देता है। यह महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद की सोच पर आधारित है, जिन्होंने स्वदेशी को केवल एक आर्थिक अवधारणा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन का प्रतीक माना। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘लोकल को वोकल’ के मंत्र को भी बल देता है। संघ, स्वदेशी जागरण मंच के माध्यम से, लोगों में अपने देश और संस्कृति के प्रति गर्व और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित करने का प्रयास कर रहा है, ताकि हम ‘मेक फॉर वर्ल्ड’ के संकल्प के साथ आगे बढ़ सकें।
5. नागरिक कर्तव्य
एक समृद्ध और लोकतांत्रिक समाज के लिए नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन अत्यंत आवश्यक है। संघ का मानना है कि प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रहित में योगदान देना चाहिए और संविधान में वर्णित अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। इन कर्तव्यों में संविधान और उसके आदर्शों का सम्मान करना, राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का आदर करना, देश की एकता और संप्रभुता को बनाए रखना, और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना शामिल है। इन कर्तव्यों का अनुपालन एक जिम्मेदार और अनुशासित समाज का निर्माण करता है।
इन पाँच आयामों के माध्यम से, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में समाज के प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण की इस महायज्ञ में अपना शत-प्रतिशत योगदान देने के लिए प्रेरित कर रहा है।