उदयपुर। समाज में सामाजिक समरसता और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देते हुए, उदयपुर जिले के रोहिड़ा गांव में एक अनोखा आयोजन किया गया। इस अवसर पर ब्राह्मण समुदाय के 15 युवाओं के साथ-साथ मेघवाल समाज के 25, लोहार समाज के 5 व सोनी समाज के 4 व अन्य समाज के 8 युवाओं ने यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण किया।
यह कार्यक्रम रोहिड़ा निवासी गिरीश जोशी के आचार्यत्व और राजेश दवे के संयोजन में सम्पन्न हुआ। साथ ही माउंट आबू गुरुकुल से आए स्वामी ओमानंद महाराज का सानिध्य रहा। स्वामी ओमानंद ने लोगों को संबोधित करते हुए प्रत्येक मंत्र और यज्ञवेदी में दी जाने वाली आहुति का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में जाति नहीं, बल्कि वर्ण व्यवस्था थी। जाति व्यक्ति के जन्म से नहीं, उसके आचार, विचार और कृत्यों से निर्धारित होती है। सम्पूर्ण मानव जाति एक ही है। समाज में सैकड़ों वर्ष पूर्व उत्पन्न हुए विकारों और भेदभाव की प्रवृत्तियों को समाप्त कर मानवता के कल्याण के लिए कार्य करना हमारा कर्तव्य है।
स्वामी ओमानंद महाराज ने सभी नवदीक्षित जनेऊधारी यजमानों को आत्मकल्याण के वैदिक व्रतों को धारण करवाया।
इस धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन स्थानीय मंदिर परिसर में किया गया, जहां विभिन्न समाजों के लोग एकत्रित हुए। ब्राह्मणों के साथ अन्य समाज के युवाओं का यज्ञोपवीत संस्कार कराना एक अनूठी पहल है, जो समाज में जातिगत भेदभाव को मिटाने और समानता का संदेश फैलाने का प्रयास है।
कार्यक्रम का समापन भजन-कीर्तन और सामूहिक भोज के साथ हुआ, जिसमें सभी समुदायों के लोगों ने मिलकर भाग लिया। इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख व्यक्तियों ने इस पहल की सराहना की और इसे समाज में बदलाव लाने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास बताया।
यज्ञोपवीत संस्कार क्या है?
यज्ञोपवीत संस्कार, जिसे ‘उपनयन संस्कार’ भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के सोलह प्रमुख संस्कारों में से एक है। ‘यज्ञोपवीत’ शब्द का अर्थ है ‘यज्ञ के लिए उपयुक्त वस्त्र’। इसे ‘जनेऊ’ भी कहा जाता है। यज्ञोपवीत, धागों का एक पवित्र त्रिपुंड (तीन धागों वाला) होता है, जिसे कंधे से लटकाकर पहनाया जाता है। इसे धारण करना व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सामाजिक जिम्मेदारी को इंगित करता है।
यज्ञोपवीत संस्कार एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान, धार्मिक कर्तव्यों और सामाजिक दायित्वों का बोध कराता है। आज के बदलते समाज में इस संस्कार का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि यह समाज में एकता और समानता को प्रोत्साहित करता है।