Saturday, July 27, 2024
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विश्व विरासत सूची में शामिल होनी चाहिए राजस्थान की यह बावड़ियां! जानें खासियत

राजस्थान के दुर्ग अपने शौर्य, पराक्रम व अनूठी पहचान से अपने सौंदर्य के साथ विश्व मानचित्र पर गुलाबी रंग में नजर आते हैं। अपने अप्रतिम सौंदर्य व बेजोड़ स्थापत्य के कारण ही छह प्रमुख किलों, आमेर, गागरोन, कुंभलगढ़, जैसलमेर, रणथंभौर और चित्तौड़गढ़ को यूनेस्को, वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल किया गया है। इससे राजस्थान और देश का गौरव और अधिक बढ़ जाता है।

हालांकि राजस्थान भारत की शानदार प्राचीन संस्कृति, ऐतिहासिक विरासत और विविधताओं के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। इसलिए न सिर्फ यहां के दुर्ग बल्कि मंदिर, हवेलियां, कुएं, बावड़ियां, कुंड आदि भी सांस्कृतिक विरासत का प्रमुख हिस्सा है। जो उसकी खूबसूरती को बढ़ाते हैं।

इस कारण ये प्रश्न भी हर बार उठता है, दुर्ग के अलावा यहां के कुएं, बावड़ी भी यूनेस्को की सूची में सम्मिलत क्यों नहीं होते? क्यों हर बार इन्हें अनदेखा कर दिया जाता है? जबकि ये गौरवशाली इतिहास के महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं।  बात करें बावड़ियों की, तब प्रदेश में कई छोटी बड़ी हजारों ऐसी स्थापत्य के बेहतरीन नमूने वाली बावड़ियां हैं जो, जल संरक्षण का मार्ग दिखाती हैं। हमें अपनी इन अनमोल धरोहर के दर्शन और संरक्षण में भागीदार होना चाहिए।
देश में बावड़ियों का प्रचलन सबसे अधिक राजस्थान में रहा हैं। यहां के अधिकांश सभी जिलों में बावड़ियां पाई जाती हैं, इनमें से कुछ अपने अद्वितीय स्थापत्य और निर्माण की वजह से विश्व प्रसिद्ध हैं, जिन्हें देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।

चूंकि बावड़ियों के निर्माण की प्रकृति एवं डिजाइन उस जगह की प्राकृतिक स्थितियों, वर्षा की मात्रा, भूमिगत जल स्तर, मिट्टी के प्रकार, निर्माण करने वाले की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। तब जल प्रबंधन के इस  महत्वपूर्ण स्तोत्र का संरक्षण और संवर्धन बेहद जरूरी हो जाता है।

कुछ संस्थाएं इन बावड़ियों के संवर्धन, संरक्षण के लिए जागृत।परन्तु यह जागरण और अधिक बढ़ना चाहिए।इनकी अनूठी विशेषता से युवाओ को अवगत कराना चाहिए। विरासत के विरोधियों के अतिक्रमण से ग्रसित होने से इन्हें संरक्षण मिलना चाहिए।  हमारे पूर्वजों का कौशल शिल्प के अद्भुत साक्ष्य है यह बावड़िया,  आगामी पीढ़ी तक इस विरासत को पहुंचाने का कर्तव्य हम सब का है।

हालांकि समय—समय पर स्थानीय लोगों द्वारा इनके संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रयास किए जाते रहे हैं। वहीं इस दिशा में भारतीय इतिहास संकलन समिति के कार्यकर्ता राजस्थान में ‘विरासत यात्रा’ कर रहे हैं। जिसका उद्देश्य ऐसे मंदिर, सराय, कुएं और बावड़ियों पर सरकार, समाज व पुरातत्व विभाग का ध्यान आकर्षित कर उन्हें संरक्षण प्रदान करना हैं जो अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।

समिति के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगललाल बोहरा बताते हैं कि, वर्तमान में वे मेवाड़ क्षेत्र में यात्रा पर निकलें हैं। ”यहां ऐसे कई मार्ग हैं जहां पर जन सुविधा की दृष्टि से राजा—महाराजाओं ने कुएं, सराय और बावड़ियों का निर्माण कराया था। विरासत यात्रा के दौरान ऐसे कई स्थानों को चिन्हित किया है। विशेषकर उदयपुर से चित्तौड़गढ़ की ओर जाने वाले मार्गो पर। बोहरा कहते हैं कि, ऐसी ही एक बावड़ी है, झरना बाई की बावड़ी जिसे त्रिमुखी बावड़ी के नाम से जाना जाता हैं। इस बावड़ी की विशेष बात ये है कि इसमें तीनों ओर से उतरने का रास्ता है। किंतु उपेक्षा से ग्रसित ये बावड़ी आज अपनी पहचान खो रही हैं। जिस पर अब अतिक्रमण का खतरा भी मंडरा रहा है।”

भारतीय इतिहास संकलन समिति प्रशासन से मांग कर रही है कि इन बावड़ियों को पहले सुरक्षित किया जाए। ”किलों—दुर्गाों सहित ये बेहतरीन बावड़ियां भी हैं जो राजस्थान की ऐतिहासिक विरासत को और भी अधिक सशक्त बनाती हैं।” जो यूनेस्कों सूची के तय मापदंडों के अनुसार शामिल की जा सकती हैं।

राजस्थान की इन बावड़ियों में आभानेरी की प्रसिद्ध चांद बावड़ी, बूंदी की रानीजी की बावड़ी एवं नागर सागर कुंड, अलवर जिले की नीमराना बावड़ी, जोधपुर का तूर जी का झालरा, और जयपुर की पन्ना मियां की बावड़ी शामिल हैं।

विश्व विरासत सूची में इसलिए सम्मिलत हो ये बावड़ियां—

जयपुर के आमेर में स्थित है ‘पन्ना मीणा’ की बावड़ी। इसे पन्ना मीणा का कुंड भी कहा जाता है। इस बावड़ी के एक ओर जयगढ़ दुर्ग और दूसरी ओर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता है। बावड़ी अपनी विशेष आकार की सीढ़ियों और बरामदों के लिए विख्यात है।

दाैसा जिले में बांदीकुई तहसील के आभानेरी में स्थित चांद बावड़ी काे भूल-भुलैया वाली बावड़ी भी कहा जाता है। बावड़ी में करीब 3,500 सीढ़ियां हैं। कहा जाता है कि इस बावड़ी काे भूत-प्रेतों ने बनाया था।

बूंदी शहर में स्थित रानीजी की बावड़ी राजस्थान की सबसे शानदार बावड़ियों में से एक मानी जाती है। यहां बावड़ी में कई कुओं का निर्माण किया गया है, जिनमें बारिश के दौरान पानी भरा रहता है।

बूंदी में ही चोगन गेट के पास दो सीढ़ीदार कुंड हैं। इनकाे पहले जनाना सागर और गंगा सागर कहा जाता था, लेकिन अब इन्हें संयुक्त रूप से ‘नागर सागर’ कुंड कहा जाता है। इसका निर्माण बूंदी के लोगों के लिए सूखे के दौरान पानी के लिए कराया गया था।

अकाल से राहत देने के लिए नीमराणा के राजा महासिंह ने 1760 में नीमराणा बावड़ी का निर्माण कराया था। 125 सीढ़ियों वाली यह बावड़ी अपने विशाल रूप के कारण विशेष महत्व रखती है। नीमराणा बावड़ी दिल्ली से 125 किमी दूर और नीमराना फोर्ट पैलेस के समीप है।

सूर्य नगरी जाेधपुर में ऐतिहासिक तूरजी का झालरा बावड़ी स्थित है। इसका निर्माण 1740 में हुआ था। इसमें करीब 3,500 सीढ़ियां हैं। तूर जी का झालरा पर्यटकाें के आकर्षण का केंद्र है।

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