प्रेस की आजादी: लोकतंत्र का प्राण, संविधान में इसका स्थान

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प्रेस की आजादी (Freedom of the Press) से तात्पर्य मीडिया को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप, सेंसरशिप या दबाव के जानकारी एकत्र करने, संसाधित करने और प्रसारित करने की स्वतंत्रता से है। यह किसी भी लोकतांत्रिक समाज का एक मूलभूत स्तंभ है, क्योंकि यह नागरिकों को सूचित निर्णय लेने, सत्ताधारियों से सवाल पूछने और विभिन्न विचारों से अवगत होने का अवसर प्रदान करती है। एक स्वतंत्र प्रेस जनता और सरकार के बीच एक पुल का काम करती है, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करती है।


संविधान में प्रेस की आजादी पर क्या कहा गया है?

भारतीय संविधान में ‘प्रेस की आजादी’ शब्द का स्पष्ट रूप से कहीं भी उल्लेख नहीं है। हालाँकि, भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर यह स्पष्ट किया है कि प्रेस की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) का एक अभिन्न अंग है।

आइए, विभिन्न अनुच्छेदों में इस विषय पर क्या-क्या कहा गया है, इसे समझते हैं:

  1. अनुच्छेद 19(1)(a): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression)
    • मुख्य आधार: यही वह अनुच्छेद है जो भारत में प्रेस की आजादी का मुख्य आधार है। यह प्रत्येक नागरिक को ‘वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में यह माना है कि इस अधिकार में प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय:
      • रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(1)(a) का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसमें विचारों को प्रसारित करने की स्वतंत्रता भी शामिल है।
      • सकल पेपर्स बनाम भारत संघ (1962): न्यायालय ने दोहराया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रकाशन की स्वतंत्रता भी शामिल है।
      • इंडियन एक्सप्रेस न्यूज़पेपर्स (बॉम्बे) प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ (1985): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने की कुंजी है और यह अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित है।
  2. अनुच्छेद 19(2): स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions)
    • सीमाएं: जहाँ अनुच्छेद 19(1)(a) प्रेस की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, वहीं अनुच्छेद 19(2) इस स्वतंत्रता पर ‘उचित प्रतिबंध’ लगाने की अनुमति देता है। ये प्रतिबंध निम्नलिखित आधारों पर लगाए जा सकते हैं:
      • भारत की संप्रभुता और अखंडता (Sovereignty and Integrity of India)
      • राज्य की सुरक्षा (Security of the State)
      • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Foreign States)
      • सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order)
      • शालीनता या नैतिकता (Decency or Morality)
      • न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)
      • मानहानि (Defamation)
      • किसी अपराध को उकसाना (Incitement to an Offence)
    • महत्व: यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि प्रेस की आजादी निरंकुश न हो और इसका उपयोग समाज या राष्ट्र को नुकसान पहुँचाने के लिए न किया जाए।
  3. अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (Protection of Life and Personal Liberty)
    • निजता का अधिकार (Right to Privacy): हालांकि सीधे तौर पर प्रेस की आजादी से संबंधित नहीं, अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार पत्रकारों के लिए महत्वपूर्ण है। प्रेस को रिपोर्टिंग करते समय व्यक्तियों के निजता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए, जब तक कि सार्वजनिक हित में इसका उल्लंघन करना नितांत आवश्यक न हो।
  4. अनुच्छेद 352-360: आपातकालीन प्रावधान (Emergency Provisions)
    • आपातकाल में निलंबन: राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) के दौरान, अनुच्छेद 19 के तहत प्राप्त अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है, जिससे प्रेस की आजादी पर गंभीर प्रतिबंध लग सकते हैं।

संक्षेप में, भारतीय संविधान सीधे तौर पर ‘प्रेस की आजादी’ का उल्लेख नहीं करता, लेकिन अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में इसे अंतर्निहित माना जाता है। वहीं, अनुच्छेद 19(2) इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों का प्रावधान करता है, ताकि इसके दुरुपयोग को रोका जा सके और राष्ट्रीय हित, सार्वजनिक व्यवस्था व व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा की जा सके। यह संतुलन ही भारतीय लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका को परिभाषित करता है।

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