डॉ. बालू दान बारहठ
भारत में विजयादशमी का पर्व केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि संकल्प दिवस भी माना जाता है। हर वर्ष इस दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक का उद्बोधन समाज और राष्ट्र के प्रति संघ के विचारों, आकांक्षाओं, और संभावित चुनौतियों का एक दृष्टिपत्र प्रस्तुत करता है। इस वर्ष के विजयादशमी भाषण में सरसंघचालक जी ने एक नई चर्चा छेड़ी—“डीप स्टेट” का जिक्र करते हुए, जो राष्ट्र के समक्ष खड़ी एक अदृश्य शक्ति के रूप में सामने आता है।
डीप स्टेट मूलतः तुर्की शब्द “डेरिन डेवलेट” से निकला है, जिसका अर्थ एक विध्वंसक, नकारात्मक शक्ति से है। इसे परिभाषित करना कठिन है क्योंकि यह एक बहुरूपी और निराकार शक्ति है, जो अलग-अलग समय और आवश्यकताओं के अनुसार रूप बदलती रहती है। यह सत्ता के समानांतर चलने वाली गतिविधियों का समूह है, जो वैधानिक संस्थाओं और जनप्रतिनिधियों के विरोध में काम करता है। इसे उन लोगों का सामूहिक संगठन माना जा सकता है जो अपने हितों या विचारधारा को संरक्षित करने के लिए राष्ट्र की संवैधानिक सत्ता से अलग रहकर कार्य करते हैं।
डीप स्टेट के पीछे काम करने वाले लोगों का एजेंडा एक समान नहीं होता, बल्कि उनकी सोच व कार्यशैली परत दर परत बंटी होती है। इसमें विभिन्न प्रकार के संगठन, सिविल सोसायटी, मीडिया, नौकरशाह, सेवानिवृत न्यायधीश, साहित्यकार, प्रोफेसर, और कई अन्य शामिल हैं जो परोक्ष रूप से स्थापित व्यवस्था के विरोध को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं। इन संगठनों का उद्देश्य मानवाधिकार, अल्पसंख्यक अधिकार, नारीवाद, पर्यावरण, आत्मनिर्णय, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मुद्दों का सहारा लेकर समाज में वैचारिक मतभेद पैदा करना होता है। यह विशेष रुचि समूह अपनी गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर और कई बार वैश्विक संगठनों से वित्तीय सहयोग प्राप्त करते हैं।
सरसंघचालक जी के भाषण में उल्लेखित डीप स्टेट का असर केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। वैश्विक स्तर पर भी इसकी छाया दिखाई देती है। हालिया वर्षों में अमेरिका, श्रीलंका, जापान, और बांग्लादेश जैसे देशों में इसे देखा गया है। श्रीलंका में तख्तापलट और जापान में शिंजो आबे की हत्या जैसे उदाहरण डीप स्टेट की गहरी पैठ को दर्शाते हैं। इसी प्रकार, अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल के दौरान डीप स्टेट की चर्चा हुई, जिसमें उनकी नीतियों का विरोध करने वाले समूहों को इसकी संज्ञा दी गई थी।
भारत में पिछले कुछ समय से किसान आंदोलन, हिजाब आंदोलन, सीएए विरोध, और खालिस्तानी गतिविधियों में डीप स्टेट की भूमिका को देखा गया है। सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के नाम पर विभिन्न संगठन राष्ट्र विरोधी तत्वों के हाथों में चले जाते हैं, जिससे सार्वजनिक असंतोष का वातावरण बनाया जाता है। विदेशी फंडिंग वाले कुछ एनजीओ, जिनके ऊपर सरकार द्वारा एफसीआरए (FCRA) अधिनियम के तहत नियंत्रण लगाया गया, इसी तरह की गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं। ग्रीन पीस, एमनेस्टी जैसी संस्थाओं द्वारा इन कानूनों का विरोध भी इसी संदर्भ में आता है।
डीप स्टेट की चुनौती केवल बाहरी तत्वों की नहीं है; देश के भीतर भी विभिन्न नौकरशाहों, सिविल सोसायटी के सदस्यों, और राजनीति में कार्यरत लोगों के बीच वैचारिक विभाजन भी डीप स्टेट का हिस्सा बनता है। यह नेक्सस सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में बाधा डालता है या उन्हें लंबित रखता है। इस बहुरूपी शक्ति का असली उद्देश्य वैधानिक व्यवस्थाओं में अस्थिरता उत्पन्न करना और जनता में असंतोष फैलाना होता है।
सरसंघचालक जी के भाषण का संदर्भ देते हुए, डॉ. बालू दान बारहठ इस पर जोर देते हैं कि आज के समय में बुद्धि बल और वैचारिक शक्ति से अधिक प्रभावशाली कुछ नहीं है। डीप स्टेट जैसी ताकतों का मुकाबला करने के लिए समाज को अपने आसपास की गतिविधियों, आंदोलनों, और लेखन पर नजर रखनी होगी। कौन क्या कह रहा है और क्यों कह रहा है—इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढना आवश्यक है ताकि राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रहित के विचार सही दिशा में आगे बढ़ सकें।
डॉ. बारहठ की यह लेखनी उन सभी राष्ट्रभक्तों के लिए एक चेतावनी है, ताकि वे इस अदृश्य शक्ति के षड्यंत्रों से सचेत रहें और राष्ट्र की अखंडता व समृद्धि को बनाए रखने के लिए सजग रहकर कार्य करें।