राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की कार्यप्रणाली और वैचारिक निष्ठा का एक सबसे अनूठा और विशिष्ट पहलू यह है कि यह किसी व्यक्ति को नहीं, बल्कि ‘भगवा ध्वज’ (Saffron Flag) को अपना गुरु मानता है। यह परंपरा केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि संघ के गहरे दार्शनिक आधार, संगठनात्मक सिद्धांतों और भारतीय संस्कृति के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। आइए, इस असाधारण गुरु-परंपरा के पीछे के कारणों और इसके व्यापक महत्व का गहन विश्लेषण करते हैं।
भगवा ध्वज: सनातन भारतीय संस्कृति का शाश्वत प्रतीक
भगवा रंग भारतीय सभ्यता में हजारों वर्षों से एक पूजनीय स्थान रखता आया है। यह केवल एक रंग नहीं, बल्कि गहन अर्थों से भरा प्रतीक है:
- त्याग और वैराग्य: यह रंग संन्यासियों, योगियों और तपस्वियों का रहा है, जो संसारिक मोह-माया का त्याग कर आध्यात्मिकता और परमार्थ के मार्ग पर चलते हैं। यह निस्वार्थ सेवा और व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर कार्य करने की प्रेरणा देता है।
- ज्ञान और प्रकाश: सूर्योदय का यह रंग अंधकार को मिटाकर ज्ञान और चेतना के आगमन का सूचक है। यह अज्ञानता को दूर कर आत्मज्ञान और राष्ट्रीय चेतना विकसित करने का संदेश देता है।
- बलिदान और शौर्य: इतिहास में यह रंग उन योद्धाओं और बलिदानियों का रहा है जिन्होंने मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। यह स्वयंसेवकों को राष्ट्र के लिए किसी भी त्याग को करने के लिए प्रेरित करता है।
- ऊर्जा और ओज: भगवा रंग में ऊर्जा, स्फूर्ति और जीवंतता का संचार होता है, जो स्वयंसेवकों में कार्य करने के उत्साह और सकारात्मकता को बढ़ाता है।
- एकता और समरसता: यह किसी विशेष पंथ, भाषा या क्षेत्र का रंग न होकर संपूर्ण भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता का प्रतीक है।
आरएसएस स्वयं को इसी सनातन सांस्कृतिक धारा का आधुनिक वाहक मानता है, इसलिए भगवा ध्वज को गुरु मानना सीधे तौर पर भारत की गौरवशाली परंपरा से जुड़ना है।
व्यक्ति पूजा से मुक्ति: संगठनात्मक शुद्धता का सिद्धांत
यह आरएसएस की सबसे मौलिक विशेषताओं में से एक है। संघ का दृढ़ विश्वास है कि:
- विचार सर्वोपरि, व्यक्ति नहीं: यदि किसी जीवित व्यक्ति को गुरु बनाया जाता है, तो समय के साथ उस व्यक्ति की सीमाएँ, त्रुटियाँ या व्यक्तिगत पसंद-नापसंद संगठन के सिद्धांतों पर हावी हो सकती हैं। इससे व्यक्ति-पूजा की प्रवृत्ति बढ़ सकती है, जो संघ के मूलभूत उद्देश्य को कमजोर कर सकती है।
- गुटबाजी का अभाव: किसी व्यक्ति विशेष को गुरु न मानने से संगठन में गुटबाजी या व्यक्तिगत निष्ठाओं के आधार पर विभाजन की संभावना कम हो जाती है। सभी स्वयंसेवकों का गुरु एक ही निर्जीव और निष्पक्ष प्रतीक होता है, जिससे उनमें समानता और समरसता का भाव पनपता है।
- सिद्धांतों की निरंतरता: व्यक्ति बदलते रहते हैं, लेकिन भगवा ध्वज जिन शाश्वत सिद्धांतों और आदर्शों का प्रतीक है, वे स्थायी रहते हैं। यह संगठन को पीढ़ियों तक अपने मूल उद्देश्य और शुद्धता के साथ बने रहने में मदद करता है।
- अहंकार का विसर्जन: भगवा ध्वज के सामने स्वयंसेवक अपने अहंकार का विसर्जन कर स्वयं को राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित करते हैं। यह उन्हें याद दिलाता है कि वे किसी व्यक्ति के अनुयायी नहीं, बल्कि एक महान विचार और आदर्श के सेवक हैं।
गुरुदक्षिणा की परंपरा: निस्वार्थ समर्पण का प्रतीक
आरएसएस में प्रतिवर्ष गुरुदक्षिणा का पवित्र कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर:
- स्वयंसेवक अपनी स्वेच्छा और सामर्थ्य के अनुसार निधि (धन) भगवा ध्वज के समक्ष अर्पित करते हैं।
- यह निधि किसी व्यक्ति विशेष या पदाधिकारी को नहीं दी जाती है।
- इस निधि का उपयोग पूरी तरह से संघ के राष्ट्रव्यापी सेवा कार्यों, संगठनात्मक विस्तार, शाखाओं के संचालन और विभिन्न सामाजिक परियोजनाओं के लिए किया जाता है।
यह परंपरा स्वयंसेवकों में निस्वार्थ त्याग, समर्पण और संघ कार्य के प्रति अपनत्व के भाव को पुष्ट करती है। यह उन्हें यह भी सिखाती है कि संगठन व्यक्ति के दान और सामूहिक प्रयासों से चलता है, न कि किसी एक स्रोत पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष: एक शाश्वत प्रेरणा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भगवा ध्वज को गुरु मानना उसकी अनूठी संगठनात्मक संस्कृति और गहरी वैचारिक जड़ों का प्रमाण है। यह केवल एक पारंपरिक प्रथा नहीं, बल्कि एक ऐसा मौलिक सिद्धांत है जो संघ को व्यक्ति पूजा से मुक्त कर, उसे भारतीय संस्कृति के शाश्वत मूल्यों, निस्वार्थ राष्ट्र सेवा और संगठनात्मक शुद्धता के मार्ग पर निरंतर चलने के लिए प्रेरित करता है। भगवा ध्वज स्वयंसेवकों के लिए एक शाश्वत प्रेरणा, आदर्श और राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण का जीवित प्रतीक है।