भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक ऐसा नाम है जो अपनी स्थापना के लगभग सौ वर्षों बाद भी गहरी छाप छोड़ रहा है। लाखों स्वयंसेवकों के साथ, यह दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में से एक है। लेकिन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कब हुई? इसकी नींव किसने रखी? और इस विशाल संगठन के पीछे क्या उद्देश्य था? आइए, इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब विस्तार से जानते हैं।
आरएसएस की स्थापना की तिथि और संस्थापक कौन थे?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की ऐतिहासिक स्थापना 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी (दशहरा) के पावन और शुभ अवसर पर हुई थी। इस दूरगामी संगठन की नींव डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (Dr. Keshav Baliram Hedgewar) ने महाराष्ट्र के नागपुर शहर में रखी थी। डॉ. हेडगेवार, जो स्वयं एक चिकित्सक और गहन राष्ट्रवादी चिंतक थे, ने भारतीय समाज को संगठित करने का एक बड़ा सपना देखा था।
स्थापना का मूल उद्देश्य और प्रारंभिक चरण: एक दूरदर्शी दृष्टिकोण
20वीं सदी के शुरुआती दशक भारत के लिए कई चुनौतियों से भरे थे। डॉ. हेडगेवार ने उस समय के सामाजिक बिखराव, राष्ट्रीय गौरव की कमी और ब्रिटिश शासन के प्रभावों को गहराई से समझा। उन्होंने महसूस किया कि भारत को एक सशक्त, आत्मनिर्भर और गौरवशाली राष्ट्र बनाने के लिए हिंदू समाज को एकजुट और अनुशासित करना अत्यंत आवश्यक है।
उनका प्रारंभिक और प्रमुख उद्देश्य था:
- हिंदू समुदाय में राष्ट्रीय भावना और आत्मसम्मान का विकास करना।
- स्वयंसेवकों के बीच चरित्र निर्माण और अनुशासन का प्रशिक्षण देना।
- समाज को संगठित करके ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा को साकार करना।
शुरुआत में, डॉ. हेडगेवार ने अपने नागपुर स्थित आवास पर कुछ समर्पित और समान विचारधारा वाले स्वयंसेवकों के साथ मिलकर इस महान विचार को मूर्त रूप दिया। इन प्रारंभिक बैठकों ने ही आरएसएस की नींव रखी।
संघ का नामकरण और पहला ‘शाखा’ अनुभव
स्थापना के तुरंत बाद संगठन का कोई निश्चित नाम नहीं था। लगभग छह महीने के विचार-विमर्श के बाद, 17 अप्रैल, 1926 को एक महत्वपूर्ण बैठक में सर्वसम्मति से इस संगठन का नाम ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) तय किया गया। यह नाम संगठन के मूल मंत्र को दर्शाता था – राष्ट्र के लिए समर्पित स्वयंसेवक।
नागपुर के प्रसिद्ध मोहितेबाड़ा मैदान में आरएसएस की पहली ‘शाखा’ (दैनिक बैठक) शुरू हुई। यह स्थान अब आरएसएस मुख्यालय परिसर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन दैनिक शाखाओं के माध्यम से स्वयंसेवकों को शारीरिक व्यायाम, खेल, देशभक्ति के गीत, बौद्धिक चर्चाओं और नैतिक मूल्यों का प्रशिक्षण दिया जाता था, जो उनके समग्र व्यक्तित्व विकास में सहायक था।
आरएसएस का विकास और अखिल भारतीय विस्तार: डॉ. हेडगेवार से श्री गुरुजी तक
डॉ. हेडगेवार के अथक प्रयासों, निस्वार्थ सेवा और दूरदर्शी नेतृत्व के कारण, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने धीरे-धीरे पूरे भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शुरू किया। उनके निधन के बाद, माधव सदाशिवराव गोलवलकर (परम पूज्य श्री गुरुजी) (Madhav Sadashivrao Golwalkar) ने संघ की बागडोर संभाली। श्री गुरुजी के कुशल नेतृत्व में, आरएसएस ने अभूतपूर्व गति से विस्तार किया और एक विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर लिया। उन्होंने संघ के विचारों और कार्यप्रणाली को देश के कोने-कोने तक पहुँचाया और इसे एक सुदृढ़ संगठनात्मक ढाँचा प्रदान किया।
आज, आरएसएस भारत का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है जिसके करोड़ों स्वयंसेवक सक्रिय रूप से समाज सेवा, राष्ट्र निर्माण और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए समर्पित हैं। संघ के मूलभूत सिद्धांत अखण्ड भारत की परिकल्पना पर आधारित हैं, जिसमें भारत की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक विरासत पर विशेष जोर दिया जाता है।
आरएसएस, बिना किसी सरकारी सहायता के, केवल स्वयंसेवकों के समर्पण और जनभागीदारी से चलता है। यह संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पर्यावरण संरक्षण, आपदा राहत और सामाजिक समरसता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है।
निष्कर्ष: एक सदी की यात्रा और भविष्य की ओर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल एक संगठन नहीं, बल्कि भारतीयता, राष्ट्रवाद और सेवा के मूल्यों को बढ़ावा देने वाला एक शक्तिशाली सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन है। अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष के करीब पहुँच रहा यह संगठन, ‘व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण’ के अपने मूल मंत्र के साथ, लगातार भारत के उत्थान के लिए कार्यरत है। इसकी शाखाएँ और सेवा कार्य भारतीय समाज के ताने-बाने को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं।