Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) Dress Code: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की औपचारिक वेशभूषा, जिसे ‘गणवेश’ नाम से जाना जाता है, संगठन की पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा रही है। ‘गणवेश’ का शाब्दिक अर्थ है ‘लोगों के संगठित समूह की वेश-भूषा’ । पिछले नौ दशकों की यात्रा में, संघ की गणवेश में कई ऐतिहासिक बदलाव किए गए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि संघ एक रूढ़िवादी संगठन नहीं है, बल्कि ‘समय के साथ चलने वाला’ (काल के अनुसार बदलने वाला) संगठन है ।
2016 में खाकी निकर (हाफ पैंट) की जगह गहरे भूरे रंग की फुल पैंट को अपनाना इस अनुकूलन का सबसे बड़ा और प्रतीकात्मक कदम था। यह बदलाव विशेष रूप से युवा वर्ग को शाखाओं के प्रति आकर्षित करने और सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ाने की संघ की तत्परता को दर्शाता है ।
प्रारंभिक स्वरूप: 1925 की खाकी गणवेश
जब 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) की स्थापना की, तब संगठन का उद्देश्य स्वयंसेवकों में अनुशासन और शौर्य का भाव भरना था । प्रारंभिक गणवेश पूरी तरह से खाकी थी ।
स्थापना काल की गणवेश में शामिल थे:
- खाकी ढीली-ढाली निकर (हाफ पैंट)
- खाकी कमीज
- खाकी टोपी और लंबे बूट
यह ड्रेस कोड इसलिए तैयार किया गया था ताकि स्वयंसेवक किसी बड़े आयोजन में ‘दूर से ही पहचान में आएं’ और उनकी वेशभूषा में ‘अनुशासन भी झलके’ । हालांकि, इस सैन्य स्वरूप ने ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित किया, जिसके कारण संघ को जल्द ही अपनी वेशभूषा में बदलाव करने पड़े। 1930 के आसपास, पुलिस की वर्दी से अलग दिखने के लिए खाकी टोपी को काली टोपी से बदला गया ।
पहला बड़ा बदलाव: 1940 में सफेद कमीज
गणवेश में पहला सबसे महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक बदलाव 1940 में आया। द्वितीय सरसंघचालक गुरु एम.एस. गोलवलकर ने खाकी कमीज की जगह सफेद कमीज (व्हाइट शर्ट) अपनाने का फैसला लिया ।
बदलाव का कारण: 5 अगस्त 1940 को, अंग्रेजों ने ‘डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट’ के तहत सैन्य ड्रिल, वर्दी के इस्तेमाल और किसी भी तरह की सामूहिक एक्सरसाइज पर प्रतिबंध लगा दिया था । सफेद कमीज को अपनाने का निर्णय संगठन के लिए एक ‘डी-मिलिटराइज़ेशन’ कदम था। इस कदम ने संघ की वर्दी के सैन्य स्वरूप को कम कर दिया और संगठन को सरकारी दमन से बचते हुए विस्तार करने की अनुमति दी ।
अन्य क्रमिक बदलाव: 1940 के बाद, अन्य घटक भी सुविधा के लिए बदले गए:
- जूते: 1973 में, लंबे चमड़े के बूट्स की जगह फीते वाले काले रंग के कैनवस के साधारण जूते लाए गए ।
- बेल्ट: बाद में, चमड़े की बेल्ट की जगह प्लास्टिक या रेक्सीन की बेल्ट का इस्तेमाल शुरू हुआ ।
90 वर्षों की पहचान: खाकी निकर और आलोचना
खाकी निकर लगभग 90 वर्षों तक संघ की सबसे विशिष्ट और सर्वविदित पहचान बनी रही । यह स्वयंसेवकों के समर्पण और शारीरिक ड्रिल के लिए सुविधा का प्रतीक थी।
हालांकि, बदलते सामाजिक परिवेश में, हाफ पैंट वयस्कों के लिए उपहास का केंद्र बन गई। राजनीतिक विरोधियों ने इस पर लगातार निशाना साधा। आरजेडी की नेता राबड़ी देवी ने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की थी कि उन्हें ‘शर्म’ नहीं आती कि बूढ़े लोग भी हाफ पैंट पहनकर आते हैं । इन आलोचनाओं के कारण, निकर को फुल पैंट से बदलने की मांग कई वर्षों से उठ रही थी, खासकर युवा और शहरी स्वयंसेवकों के बीच ।
2010 में, तत्कालीन सरसंघचालक मोहन भागवत और सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने भी निकर को बदलने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन संगठन के ‘ओल्ड गार्ड’ के ‘भारी विरोध’ के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा था ।
2016 का ऐतिहासिक फैसला: फुल पैंट का आगमन
लंबे समय से चल रही बहस के बाद, संघ की गणवेश में सबसे बड़ा और सबसे स्पष्ट बदलाव मार्च 2016 में हुआ। राजस्थान के नागौर में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS), जो संघ की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है, की बैठक में खाकी निकर की जगह गहरे भूरे रंग की फुल पैंट (Dark Brown Full Pants) को औपचारिक रूप से अपनाने का निर्णय लिया गया ।
संगठनात्मक तर्क: सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने इस ऐतिहासिक निर्णय की घोषणा करते हुए कहा था: “हम लोग समय के साथ चलते हैं। सामान्य जीवन में पैंट का आमतौर पर इस्तेमाल होता है। इसलिए हमें ड्रेस कोड बदलने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।” ।
रंग का चुनाव: संघ ने खाकी पैंट की बजाय गहरे भूरे रंग को अपनाया। जब जोशी से गहरे भूरे रंग को चुनने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ‘कोई खास वजह नहीं’ है, बस यह रंग ‘आमतौर पर उपलब्ध है और अच्छा दिखता है’ । यह गहरे भूरे रंग का चयन खाकी के सैन्य स्वरूप से पूरी तरह दूरी बनाने की एक रणनीति भी थी।
वर्तमान गणवेश और खरीद प्रक्रिया
वर्तमान में, स्वयंसेवकों की गणवेश में निम्नलिखित अनिवार्य घटक शामिल हैं :
घटक | रंग | विशेष विवरण |
फुल पैंट | गहरा भूरा (Dark Brown) | फुल लेंथ, साधारण कट |
कमीज | सफेद | हाफ/फुल स्लीव्स |
टोपी | काली | कपड़े की टोपी |
बेल्ट | काला/भूरा | रेक्सीन/प्लास्टिक |
जूते | काला | फीते वाले कैनवस या साधारण जूते |
खरीद और वितरण: संघ की गणवेश की वितरण प्रणाली संगठन के आंतरिक अनुशासन को दर्शाती है। यह वर्दी बाज़ार में सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं होती है। स्वयंसेवक इसे सीधे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दफ्तरों से खरीदते हैं । यह बिक्री ‘न घाटा, न मुनाफा’ (No Loss, No Profit) के सिद्धांत पर मामूली कीमत पर की जाती है, ताकि इसकी लागत पूरी की जा सके। कोई भी स्वयंसेवक या सदस्य संघ के दफ्तर में जाकर अपनी माप की वरदी खरीद सकता है ।
आधुनिकता की ओर एक कदम
गणवेश का यह 90 वर्षीय सफर आरएसएस की छवि को आधुनिक और युवा केंद्रित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। 2016 का बदलाव सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट नहीं था, बल्कि यह संगठन की व्यावहारिक जरूरतों (युवाओं को आकर्षित करना) और सामाजिक रुझानों के साथ तालमेल बिठाने की इच्छाशक्ति को दर्शाता है। गणवेश का वर्तमान स्वरूप संघ की सामूहिक पहचान और अनुशासन को बनाए रखता है, साथ ही स्वयंसेवकों को 21वीं सदी के अनुरूप एक अधिक स्वीकार्य वेशभूषा प्रदान करता है।