नागपुर, महाराष्ट्र: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव (Vijayadashami Utsav) पर अपने संबोधन में, हिंदू समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और सामाजिक समरसता स्थापित करने के लिए एक सीधा और सशक्त संदेश दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सभी देवी-देवताओं और श्रद्धा के केंद्रों को जाति के आधार पर नहीं बाँटना चाहिए, बल्कि सबको एक साथ मिलकर पर्व मनाने चाहिए।
साझा विरासत का आह्वान: वाल्मीकि और रविदास
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि समाज में विभाजन की दीवारें तोड़नी होंगी और इसके लिए साझा विरासत को अपनाना ज़रूरी है। उन्होंने सवाल किया:
“वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि बस्ती में क्यों हो? वाल्मीकि ने रामायण तो पूरे हिंदू समाज के लिए लिखा।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि भगवान वाल्मीकि की जयंती और भगवान संत रविदास की जयंती सब मिलकर मनाएं। उन्होंने आग्रह किया कि सारे पर्व-त्योहार हिंदू समाज मिलकर मनाए। उन्होंने इस सहभागिता को अंदरूनी और बाहरी, दोनों स्तर पर आवश्यक बताया।
ऊँच-नीच का भेद समाप्त हो: मंदिर से शमशान तक सबकी पहुँच
मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता के लिए सबसे कड़ा और आवश्यक कदम उठाने की मांग की। उन्होंने सार्वजनिक उपयोग और श्रद्धा के केंद्रों को सभी के लिए खोलने का आह्वान किया:
“समाज के श्रद्धा के या उपयोग के जो केंद्र होते हैं, मंदिर है, पानी है, शमशान है… वो सबके के लिए खुले चाहिए, ऐसा वातावरण चाहिए, ये हमको करना पड़ेगा, इसको लेकर हम समाज में जाएंगे।”
उन्होंने साफ संदेश दिया है कि देवी-देवताओं को जाति-धर्म के आधार पर ना बाँटकर सबको एक साथ मिलकर रहना चाहिए और ऊंच-नीच के भेद को मिटाकर काम करना चाहिए। यह कथन संघ की ओर से जातिगत अन्याय और भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक स्पष्ट संगठनात्मक संकल्प को दर्शाता है।