नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव के अवसर पर राष्ट्र की सुरक्षा चुनौतियों पर एक अत्यंत स्पष्ट और मुखर संदेश दिया है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में हुए पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसी चुनौतियों से निपटने में नेतृत्व ने जो दृढ़ता (determination) और शौर्य (valor) दिखाया, वह देश के लिए गर्व का विषय है। उनका यह संबोधन राष्ट्रीय एकता और आंतरिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने पर केंद्रित था।
पहलगाम हमला: निर्णायक नेतृत्व की कसौटी
मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर देश की प्रतिक्रिया निर्णायक होनी चाहिए। उन्होंने पहलगाम में हुए आतंकी हमले को एक ऐसी घटना बताया, जिसने राष्ट्र को अपनी सामूहिक शक्ति प्रदर्शित करने का अवसर दिया।
- नेतृत्व की दृढ़ता: भागवत ने कहा कि सरकार और सेना ने मिलकर इस चुनौती का सामना किया। उन्होंने दृढ़ता पर जोर देते हुए कहा कि जब राष्ट्र की सुरक्षा का विषय आता है, तो नेतृत्व की इच्छाशक्ति ही सबसे बड़ी पूंजी होती है।
- शौर्य की प्रशंसा: उन्होंने भारतीय सेना और सुरक्षा बलों के शौर्य की सराहना की, जिनके कारण दुश्मन को निर्णायक और करारा जवाब मिला। उनका यह कथन सुरक्षा बलों के मनोबल को मजबूती देता है।
कौन दोस्त, कौन दुश्मन: आंतरिक उग्रवादियों पर कार्यवाही
संघ प्रमुख ने अपने बयान को केवल सीमा पार के खतरों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि देश के आंतरिक सुरक्षा के आयामों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि:
“पहलगाम हमले ने हमें बताया कि कौन हमारा दोस्त है और कौन दुश्मन। देश के अंदर अशांति फैलाने वाले उग्रवादियों (extremists creating unrest) पर भी कार्यवाही हुई है।”
उनका यह बयान सुरक्षा एजेंसियों द्वारा देश के भीतर अस्थिरता फैलाने वाले तत्वों, अलगाववादियों (separatists) और उग्रवादियों के खिलाफ की गई कानूनी कार्रवाई की ओर इशारा करता है। भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि आंतरिक सामाजिक समरसता (Social Harmony) और कानून का शासन (Rule of Law) बनाए रखने के लिए, ऐसे तत्वों को निर्णायक रूप से नियंत्रित करना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण बाहरी आतंकवाद और आंतरिक विघटन दोनों को एक ही सुरक्षा चुनौती के रूप में देखता है।
विजयदशमी का संकल्प: आध्यात्मिक आधार पर शक्ति
भागवत ने अपने संबोधन को विजयादशमी के त्योहार से जोड़ा। उन्होंने कहा कि विजयादशमी का मूल संदेश अधर्म पर धर्म की विजय है, और यह विजय तभी संभव है जब समाज आध्यात्मिक आधार पर मजबूत हो।
“संघ स्वयं को बढ़ाने का कार्य नहीं करता, बल्कि राष्ट्र को सशक्त बनाने का कार्य करता है।”
उन्होंने कहा कि राष्ट्र की भौतिक शक्ति (physical strength) तभी प्रभावी होगी जब उसके पीछे आध्यात्मिक शक्ति (spiritual strength) और राष्ट्रीय चेतना (national consciousness) का बल हो। उन्होंने स्वयंसेवकों को ‘पंच परिवर्तन’ (Family Enlightenment, Social Harmony, etc.) के माध्यम से समाज में इन मूलभूत मूल्यों को मजबूत करने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उनका यह संदेश बताता है कि शारीरिक बल और सैन्य पराक्रम का आधार हमेशा नैतिक और सांस्कृतिक दृढ़ता ही होती है।