गुरु पूर्णिमा: ज्ञान, श्रद्धा और समर्पण का पर्व

Mahesh Bajya

गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में आस्था, ज्ञान और परंपरा का प्रतीक पर्व है। यह दिन गुरुओं को श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता अर्पित करने के लिए समर्पित है। यह न केवल शास्त्रीय गुरुओं के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का अवसर है, बल्कि जीवन के हर उस मार्गदर्शक के लिए सम्मान का दिन है जिसने हमें सीखने और आगे बढ़ने की राह दिखाई।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा हर वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का संकलन किया और महाभारत की रचना की। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। वेदव्यास को “आदिगुरु” के रूप में पूजा जाता है।

यह दिन आत्मचिंतन, अध्ययन और आध्यात्मिक विकास का अवसर भी होता है। विद्यार्थी इस दिन अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं, संत और साधक अपने गुरुओं के चरणों में कृतज्ञता अर्पित करते हैं।

गुरु कौन होता है?

गु” यानी अंधकार और “रु” यानी प्रकाश। जो अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाए – वही सच्चा गुरु होता है। वह केवल विषय नहीं सिखाता, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है।

गुरु पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है?

  • शिष्यों द्वारा गुरु को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है
  • आश्रमों व विद्यालयों में विशेष सत्संग व प्रवचन होते हैं
  • कई लोग इस दिन उपवास रखते हैं और ध्यान व जप करते हैं
  • आज के दिन कई छात्र अपने गुरु को “गुरु दक्षिणा” भी अर्पित करते हैं

आधुनिक युग में गुरु की भूमिका

आज के डिजिटल युग में गुरु केवल कक्षा या मंदिर तक सीमित नहीं हैं। माता-पिता, शिक्षक, कोच, मेंटर, यहां तक कि जीवन के अनुभव भी गुरु की भूमिका निभाते हैं। सोशल मीडिया, ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म्स और पुस्तकों के माध्यम से भी अब ज्ञान का प्रकाश फैलाया जा रहा है।

एक संदेश

गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में सच्चे ज्ञान और दिशा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है। अपने जीवन में जो भी व्यक्ति आपके पथ प्रदर्शक बने हैं – आज उन्हें धन्यवाद कहिए। यह दिन आपके जीवन में नई प्रेरणा, नई दिशा और सकारात्मक ऊर्जा लाए।

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