लूनी नदी: भारत की एकमात्र नदी जो कभी समुद्र तक नहीं पहुँचती – उद्गम, मार्ग और खारेपन का रहस्य

जानें लूनी नदी (Luni River) का विस्तृत इतिहास, भूगोल और रहस्यमय सफर। नाग पहाड़, अजमेर से उद्गम, 500 किलोमीटर का मार्ग, बालोतरा के बाद पानी का मीठे से खारा होना, और कच्छ के रेगिस्तान (Rann of Kutch) में विलीन होने की पूरी कहानी। भारत की अद्वितीय अंतःप्रवाहित नदी।

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Luni River: भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक विविधता में लूनी नदी का अपना एक विशिष्ट और रहस्यमय स्थान है। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि थार मरुस्थल के हृदय में बहती एक ऐसी जीवनरेखा है जो प्रकृति के अनूठे नियमों का पालन करती है। भारत की लगभग सभी प्रमुख नदियाँ किसी न किसी रूप में विशाल समुद्रों तक अपनी यात्रा पूरी करती हैं, लेकिन लूनी नदी इस नियम का अपवाद है। यह भारत की एकमात्र प्रमुख अंतःप्रवाहित नदी (Inland Drainage River) है, जो कभी समुद्र तक नहीं पहुँचती और अपनी लगभग 500 किलोमीटर की यात्रा पूरी करने से पहले ही गुजरात के कच्छ के रेगिस्तान की रेतीली भूमि में विलीन हो जाती है। इसकी यह अनूठी विशेषता ही इसे ‘मरुगंगा’ या ‘रेगिस्तान की गंगा’ का उपनाम देती है।

बारिश के समय नदी में पानी आने पर जश्न मनाते ग्रामीण

उद्गम स्थल और प्रारंभिक मीठा प्रवाह

लूनी नदी का उद्गम राजस्थान के अजमेर ज़िले में स्थित नाग पहाड़ (Naga Hills) से होता है। नाग पहाड़ अरावली पर्वतमाला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ से निकलने के बाद, यह नदी ‘सागरी’ के नाम से जानी जाती है, और बाद में पुष्कर के पास ‘सरस्वती’ नदी से मिलकर लूनी का रूप लेती है। अपनी प्रारंभिक यात्रा में, अजमेर से लेकर राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में स्थित बालोतरा (Balotra) नामक स्थान तक, लूनी का पानी पूरी तरह से मीठा रहता है। यह इस क्षेत्र के लिए एक वरदान है, जहाँ इसका पानी कृषि और पेयजल दोनों के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी यह प्रारंभिक मिठास, अपने निचले मार्ग में होने वाले रासायनिक परिवर्तन के कारण और भी उल्लेखनीय हो जाती है।

लूनी नदी अजमेर से निकलकर राजस्थान के छह प्रमुख ज़िलों – अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर और जालोर – से होकर बहती है। यह पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए एक जीवनदायिनी शक्ति है, जहाँ जल संसाधनों की कमी एक सतत चुनौती बनी रहती है।

सहायक नदियाँ और विस्तृत अपवाह तंत्र

लूनी नदी का अपवाह तंत्र काफी विस्तृत है, जिसमें कई सहायक नदियाँ शामिल हैं जो अरावली की पश्चिमी ढलानों से निकलकर इसमें मिलती हैं। इनमें से प्रमुख हैं:

  • जोजड़ी (Jojari): यह लूनी की एकमात्र सहायक नदी है जो अरावली से नहीं निकलती, बल्कि पूर्वी दिशा से इसमें मिलती है।
  • सुकड़ी (Sukri): यह नदी पाली और जालोर ज़िलों में बहती है और लूनी के लिए महत्वपूर्ण जल लाती है।
  • बांडी (Bandi): यह पाली ज़िले की महत्वपूर्ण नदी है, जिस पर पाली शहर स्थित है।
  • जवाई (Jawai): यह लूनी की सबसे बड़ी सहायक नदी है, जिस पर जवाई बाँध (Jawai Dam) बना हुआ है, जो पश्चिमी राजस्थान के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है।

इन सहायक नदियों के माध्यम से, लूनी बेसिन एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र को सिंचित करता है, जो कृषि और पशुधन के लिए महत्वपूर्ण है।

पानी के खारेपन का रहस्य: बालोतरा से आगे का बदलाव

लूनी नदी की सबसे रहस्यमय और वैज्ञानिक रूप से दिलचस्प विशेषता इसके पानी का रासायनिक परिवर्तन है। बालोतरा नामक स्थान पर पहुँचने के बाद, नदी का मीठा पानी अचानक खारा (saline) होने लगता है। यह परिवर्तन कई भौगोलिक और भू-रासायनिक कारणों का परिणाम है:

  1. मिट्टी की संरचना: बालोतरा से आगे का क्षेत्र थार मरुस्थल का हिस्सा है, जिसकी मिट्टी में सोडियम क्लोराइड और अन्य खनिजों की उच्च सांद्रता पाई जाती है। जब नदी का पानी इन नमकीन मिट्टी और चट्टानों के संपर्क में आता है, तो ये खनिज उसमें घुल जाते हैं।
  2. उच्च वाष्पीकरण: मरुस्थलीय क्षेत्र में उच्च तापमान और कम आर्द्रता के कारण पानी का वाष्पीकरण (evaporation) बहुत तेज़ी से होता है। जब पानी वाष्पित होता है, तो उसमें घुले हुए नमक के कण पीछे रह जाते हैं, जिससे शेष पानी में नमक की सांद्रता बढ़ जाती है और वह खारा हो जाता है।
  3. भूमिगत जल का प्रभाव: इस क्षेत्र में भूमिगत जल भी अक्सर खारा होता है, और यह भी नदी के पानी को प्रभावित कर सकता है।

यह अनूठी घटना लूनी को एक ऐसा अध्ययन का विषय बनाती है जो प्राकृतिक जल विज्ञान और भू-विज्ञान की जटिलताओं को उजागर करती है।

कच्छ के रेगिस्तान में विलीन होना: एक अंत का आरंभ

लूनी नदी राजस्थान के जालोर ज़िले से निकलकर गुजरात में प्रवेश करती है। गुजरात में यह कच्छ के रेगिस्तान के उत्तरी भाग में, विशेष रूप से कच्छ के रण (Rann of Kutch) के दलदली और रेतीले क्षेत्र में विलीन हो जाती है। यहाँ की अत्यधिक पारगम्य (permeable) रेतीली मिट्टी नदी के पानी को तेज़ी से सोख लेती है, और शुष्क जलवायु के कारण पानी का वाष्पीकरण भी तीव्र गति से होता है, जिससे नदी समुद्र तक पहुँचने से पहले ही अदृश्य हो जाती है।

लूनी नदी का यह अनोखा सफर इसे भारतीय भूगोल में एक विशेष स्थान दिलाता है। यह न केवल एक प्राकृतिक घटना है, बल्कि राजस्थान के लोगों के लिए संघर्ष, अनुकूलन और जीवन की सतत खोज का प्रतीक भी है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि प्रकृति के अपने नियम हैं, और हर नदी का अपना एक विशिष्ट गंतव्य होता है, भले ही वह समुद्र ही क्यों न हो।

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