Sunday, May 19, 2024
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क्या है अब किसानों का आगे का प्लान ? सरकार के प्रस्ताव को किसानों ने किया खारिज

चौथे दौर की किसानों और सरकार के बीच बैठक में जो प्रस्ताव सरकार की ओर से दिए गए थे उसे किसानों ने सोमवार शाम खारिज कर दिया है और आंदोलन को जारी रखते हुए दिल्ली कूच का ऐलान किया है. किसान नेताओं का कहना है कि सभी फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग के लिए अब वह बुधवार सुबह 11 बजे से अपना ‘दिल्ली चलो’ विरोध फिर से शुरू करेंगे. किसानों ने आंदोलन को लेकर आगे का प्लान भी बताया है.ऐसे में सवाल ये है कि किसान संगठनों की मांग क्या थी और उस पर केंद्र सरकार की ओर से क्या प्रस्ताव दिया गया था….किसान संगठनों की मांग है कि 23 फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी दिया जाए. एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाने की मांग की जा रही है. स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को अमल में लाया जाए. किसानों और खेत मज़दूरों को पेंशन दी जाए. ऐसा होता है तो किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना मूल्य मिलेगा. यानी अगर खेती करने में किसान के 10 रुपये लग रहे हैं तो वो चाहते हैं कि उन्हें फसल बेचने पर 15 रुपये मिलें. इसके अलावा लखीमपुर खीरी मामले में दोषियों को सज़ा देने की मांग भी किसान कर रहे हैं…18 फ़रवरी को किसानों के साथ बातचीत में केंद्र सरकार ने पाँच फसलों पर एमएसपी देने का प्रस्ताव दिया था. इस प्रस्ताव के तहत किसानों को सरकारी एजेंसियों के साथ पाँच साल का करार करना था. किसानों को दिए प्रस्ताव के बारे में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ”पैनल ने किसानों को एक समझौते का प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत सरकारी एजेंसियां उनसे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पाँच साल तक दालें, मक्का और कपास ख़रीदेंगी.”भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा कि उन्होंने केंद्र के प्रस्ताव पर विस्तार से चर्चा की, जो रविवार रात प्रदर्शनकारी किसान नेताओं और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच चौथे दौर की बैठक के दौरान पेश किया गया था. चर्चा के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह किसानों के पक्ष में नहीं है. हम सभी 23 फसलों पर एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी की अपनी मांग पर कायम हैं. किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि ‘दिल्ली चलो’ विरोध प्रदर्शन बुधवार सुबह 11 बजे फिर से शुरू होगा. सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि हम सरकार से अपील करते हैं कि या तो हमारी मांगें स्वीकार करें या हमें दिल्ली जाने दें. प्रदर्शनकारी किसान बैरिकेड तोड़ना नहीं चाहते, लेकिन कोई हमारी बात नहीं सुन रहा. हम कोशिश कर रहे हैं कि किसी को नुकसान न पहुंचे. हम नहीं चाहते कि किसी की जान जाए. लेकिन यह सरकार सुन नहीं रही है.

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