ज्ञान बढ़े गुणवान की संगत,
ध्यान बढ़े तपस्वी संग कीने।
मोह बढ़े परिवार की संगत,
लोभ बढ़े धन में चित्त दीने।
क्रोध बढ़े नर मूढ़ की संगत,
काम बढ़े त्रिया संग कीने।
बुद्धि विचार विवेक बढ़े,
कवि दीन सुसज्जन संगत कीने।
ज्ञान घटे कोई मूढ़ की संगत,
ध्यान घटे बिन धीरज लाये।
प्रीत घटे परदेस बसे अरु,
भाव घटे नित ही घर जाये।
सोच घटे कोई साधु की संगत,
रोग घटे कछु औषधि खाये।
गंग कहे सुण शाह अक़ब्बर,
पाप घटे हरि के गुण गाये ।