बस्ती आयुर्वेद में वर्णित पंचकर्मों में से एक है। शरीर में औषधियों को शरीर के अन्दर करने की प्रक्रिया को बस्ती कहा जाता है। बस्ती संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ मूत्राशय की थैली है। अतीत में, यह बकरियों आदि जानवरों के मूत्राशय की थैलियों की मदद से किया जाता था, इसलिए इसका नाम बस्ती पड़ा। शरीर में तीन दोषों वात, पित्त और कफ में से वात मुख्य रूप से बड़ी आंत में स्थित होता है। बस्तीकर्म में, मलाशय के माध्यम से बड़ी आंत में दवाओं को डालने से पेट फूलना कम हो जाता है। यह भी अपनी शक्ति से पूरे शरीर में फैल जाता है और अन्य अशुद्धियों को नीचे खींच कर बड़ी आंत में जमा मल को हटा देता है। इसलिए बस्ती को अर्ध चिकित्सा (आधा उपचार) भी कहा जाता है।
बस्तीकर्म से पहले रोगी के पेट, कमर, जांघों आदि को तिल के तेल से मालिश की जाती है। फिर सभी अंगों की भाप से सेंकाई की जाती है। रोगी को बिस्तर के बाईं ओर बाएं करवट लिटाया जाता है और आराम के लिए दाहिने पैर को पेट तक मोड़ा जाता है। फिर एक रबर ट्यूब को तेल के साथ रोगी के मलाशय में डाला जाता है और इसके सहारे रोगी की बड़ी आंत में औषधियां पहुंचाई जाती हैं।