क्या आपने कभी सोचा है कि पहाड़ की चोटी पर विराजमान कोई देवता 1000 साल से भी अधिक समय से भक्तों का इंतज़ार कर रहे हों? छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा जिले (Dantewada District) में स्थित ढोलकल गणेश मंदिर (Dholkal Ganesh Temple) एक ऐसा ही रहस्यमयी और चमत्कारी स्थान है। समुद्र तल से 3000 फीट की ऊंचाई पर, ढोलक के आकार की पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर अपनी अद्भुत गणेश प्रतिमा के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
ऐतिहासिक जड़ें और पौराणिक कथा इस मंदिर का इतिहास नागवंशी शासकों (Nagvanshi Rulers) से जुड़ा है, जिन्होंने 11वीं सदी में इस प्रतिमा की स्थापना की थी। लोककथाओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहाँ भगवान परशुराम (Parshuram) और भगवान गणेश (Ganesh) के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। इसी युद्ध में परशुराम के फरसे से गणेश जी का एक दांत टूट गया था, और यह माना जाता है कि मूर्ति में खंडित दांत इसी घटना का प्रतीक है।
अद्वितीय प्रतिमा और रोमांचक ट्रेकिंग ढोलकल गणेश की प्रतिमा एक ही विशाल ग्रेनाइट पत्थर को तराश कर बनाई गई है। 2.5 फीट ऊंची इस चतुर्भुजी प्रतिमा में गणेश जी को पद्मासन मुद्रा में बैठे दिखाया गया है, जिनके हाथों में उनका टूटा हुआ दांत, फरसा और लड्डू हैं। इस पवित्र स्थान तक पहुँचने का रास्ता बहुत कठिन है। घने जंगलों से होकर लगभग 14 किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण ट्रेकिंग (Trekking) के बाद ही इस भव्य प्रतिमा के दर्शन हो पाते हैं, जो इस यात्रा को और भी आध्यात्मिक और साहसिक बनाती है।
चोरी और पुनर्व्यवस्थापना की कहानी सदियों तक यह मंदिर घने जंगलों में छिपा रहा और 2012 में इसकी दोबारा खोज की गई। 2017 में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में यह प्रतिमा चोरी हो गई थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों के प्रयासों से इसे जल्द ही वापस लाकर उसी स्थान पर पुनः स्थापित कर दिया गया। अब यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) के संरक्षण में है।
हर साल गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन, हजारों भक्त इस मुश्किल यात्रा को तय कर भगवान के दर्शन के लिए यहाँ पहुंचते हैं। ढोलकल गणेश मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, कला और प्रकृति का एक ऐसा संगम है जो हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है।