समकालीन युवा विमर्श: भारतीय दर्शन में ही मिलते हैं युगानुकूल समाधान

Live Sach Profle Photo

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर एवं समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्र, राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आज “समकालीन युवा विमर्श” विषय पर एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि आज का युवा जिन जटिल, सामाजिक और वैचारिक संकटों से जूझ रहा है, उनके वास्तविक और युगानुकूल समाधान भारतीय दर्शन (Indian Philosophy) और ग्रंथों में ही निहित हैं।


परिवर्तनशील युग में वैचारिक संकट

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में, मुख्य वक्ता और राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि आज का युवा एक तीव्र परिवर्तनशील युग में है और अनेक वैचारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकटों से जूझ रहा है।

उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा:

“भारतीय दर्शन इन चुनौतियों के समाधान के लिए युगानुकूल मार्गदर्शन प्रदान करता है। युवाओं को अपने भीतर निहित शक्ति और विवेक को पहचानना चाहिए तथा जीवन मूल्यों को आचरण में लाना चाहिए।”

इस सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर वाय. एस. रमेश ने की। उन्होंने विद्यार्थियों को जीवन में वैचारिक स्पष्टता के साथ-साथ व्यवहार में शुचिता (purity) लाने के लिए प्रेरित किया।

संस्कृत साहित्य और पश्चिमी जीवनशैली की समीक्षा

द्वितीय सत्र में, वक्ता सहायक आचार्य एवं लेखक डॉ. सुनील खटीक ने संस्कृत साहित्य (Sanskrit Literature) के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य में निहित जीवन शैली को समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए, क्योंकि वही भारतीय संस्कृति की आत्मा है।

डॉ. खटीक ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय ग्रंथों में मानव जीवन के सभी आयामों का समन्वित दर्शन मिलता है, जो आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। साथ ही, उन्होंने युवाओं पर पश्चिमी जगत द्वारा थोपी जा रही स्वच्छंद जीवनशैली की समीक्षात्मक आलोचना (critical review) किए जाने की आवश्यकता भी व्यक्त की। इस सत्र की अध्यक्षता सहनिदेशक प्रोफेसर बोध कुमार झा ने की।

कुटुंब विघटन और ‘वोकिज़्म’ पर चिंता

कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्र के संयोजक डॉ. अमित झालानी ने वर्तमान परिदृश्य की चुनौतियों को सामने रखा। उन्होंने कहा कि:

“वर्तमान परिदृश्य में जब हम पारिवारिक-सामाजिक विघटन के संकट से जूझ रहे हैं और ‘वोकिज़्म’ (Wokeism) जैसी विचारधाराएँ सांस्कृतिक अस्मिता के समक्ष चुनौती बनकर उभर रही हैं, तब भारतीय दृष्टि पर आधारित जीवनमूल्यों और शोधपरक अध्ययन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।”

उन्होंने कहा कि अध्ययन केंद्र का उद्देश्य समाज में प्रचलित विमर्शों का विश्लेषण करते हुए भारतीय चिंतन पर आधारित वैचारिक दृष्टिकोण को स्थापित करना है। कार्यक्रम का संचालन आचार्य नरेश सिंह ने किया, जिसमें विद्यार्थियों और अध्यापकों की सक्रिय भागीदारी रही।

यह भी पढ़ें

Live Sach – तेज़, भरोसेमंद हिंदी समाचार। आज की राजनीति, राजस्थान से ब्रेकिंग न्यूज़, मनोरंजन, खेल और भारतदुनिया की हर बड़ी खबर, सबसे पहले आपके मोबाइल पर पढ़ें!

Share This Article
Leave a Comment