भारतीय इतिहास का ‘उत्तर मुगल काल’ (1707-1857 ईस्वी) राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक दुर्बलता और केंद्रीय सत्ता के लगातार कमजोर पड़ने का दौर था। औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य एक के बाद एक ऐसे शासकों के हाथों में आया, जिनमें शासन करने की दूरदर्शिता और क्षमता का घोर अभाव था। इसी क्रम में, एक शासक हुए रोशन अख्तर, जिन्हें इतिहास में उनके भोगवादी स्वभाव के कारण ‘रंगीला बादशाह’ (Rangila Badshah) के नाम से जाना जाता है। उन्होंने मोहम्मद शाह (Muhammad Shah) के नाम से शासन किया, और उन्हीं के कार्यकाल में विशाल मुगल साम्राज्य का पतन अपने चरम पर पहुँच गया।
औरंगजेब के बाद मुगलों का पतन: एक अयोग्य शासकों की श्रृंखला
औरंगजेब की नीतियों, विशेषकर उनके अत्यधिक खर्चों और दक्कन में लंबे अभियानों ने मुगल खजाने को बुरी तरह खाली कर दिया था। उनके धार्मिक अत्याचारों ने भी जनता में असंतोष पैदा किया, जिसका खामियाजा आने वाले शासकों को भुगतना पड़ा।
औरंगजेब के बाद गद्दी पर बैठने वाले शासकों की सूची उनकी कमजोरियों के कारण बदनाम रही:
- बहादुर शाह प्रथम (Bahadur Shah I): इन्हें ‘बेखबर’ (Bekhabar) कहा जाता था, क्योंकि वे प्रशासन के प्रति लापरवाह थे।
- जहाँदार शाह (Jahandar Shah): इन्हें ‘लंपट मूर्ख’ (Lumpat Murkh) के रूप में जाना जाता था, जो भोग-विलास में डूबे रहते थे।
- फर्रुखसियर (Farrukhsiyar): इन्हें ‘कायर’ (Kayar) की उपाधि मिली, क्योंकि वे राजनीतिक षड्यंत्रों में फँसे रहे और अपनी जान गँवा बैठे।
इन सबके बाद, 1719 ईस्वी में सिंहासन पर बैठे रोशन अख्तर, जो मोहम्मद शाह के नाम से जाने गए। उनके शासनकाल ने मुगल साम्राज्य के ताबूत में अंतिम कील ठोकने का काम किया।
मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ का शासन: भोगवाद और अक्षमता का प्रतीक
मोहम्मद शाह (1719-1748 ईस्वी), जिन्हें ‘रंगीला बादशाह’ (Rangila Badshah) के नाम से जाना जाता था, अपने समय के सबसे भोगवादी शासकों में से एक थे। उनका ध्यान शासन-प्रशासन की बजाय कला, संगीत, नृत्य और व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं पर अधिक केंद्रित रहता था। इसी कारण उनके कार्यकाल में मुगल दरबार में अराजकता और भ्रष्टाचार चरम पर पहुँच गया।
कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि वे दरबार में कभी-कभी नग्न ही आ जाते थे और दरबार की महिलाओं को भी नग्न रहने को कहते थे। हालाँकि, इन दावों के पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण कम ही मिलते हैं, लेकिन यह उनकी भोगवादी और गैर-जिम्मेदार मानसिकता को दर्शाता है। यह निकम्मापन और घृणित कार्य ही उनके शासनकाल में मुगल साम्राज्य के अंत की नींव बना।
साम्राज्य का विखंडन और आंतरिक चुनौतियाँ
रंगीला बादशाह के शासनकाल में मुगल साम्राज्य कई टुकड़ों में बिखरने लगा। केंद्रीय सत्ता की कमजोरी का फायदा उठाकर कई प्रांतीय गवर्नरों (Provincial Governors) ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी:
- बंगाल (Bengal): मुर्शिद कुली खान (Murshid Quli Khan) ने बंगाल को मुगल नियंत्रण से लगभग मुक्त कर लिया।
- हैदराबाद (Hyderabad): निज़ाम-उल-मुल्क आसफ जाह (Nizam-ul-Mulk Asaf Jah) ने हैदराबाद में अपनी स्वतंत्र रियासत स्थापित कर ली।
- अवध (Awadh): सआदत खान (Saadat Khan) ने अवध को एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में स्थापित किया।
आंतरिक विखंडन के साथ-साथ बाहरी आक्रमणों ने भी साम्राज्य को भीतर से खोखला कर दिया। 1737 ईस्वी में मराठाओं (Marathas) ने दिल्ली पर आक्रमण किया। हालाँकि उन्होंने मुगलों पर कब्ज़ा नहीं किया, लेकिन दिल्ली से लूटी गई भारी धन-दौलत वापस ले गए, जिससे मुगल खजाना और भी खाली हो गया।
नादिर शाह का आक्रमण: मयूर सिंहासन और कोहिनूर का गुम होना (1739)
मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ के शासनकाल की सबसे विनाशकारी घटना 1739 ईस्वी में ईरानी शासक नादिर शाह (Nadir Shah) का आक्रमण था। नादिर शाह ने पहले अवध पर हमला किया था, लेकिन अवध के नवाब सआदत खान ने उसे दिल्ली पर हमला करने के लिए उकसाया और दिल्ली की अपार दौलत का लालच दिया।
नादिर शाह ने दिल्ली पर जमकर लूटपाट की। यह लूट इतनी भीषण थी कि मुगल साम्राज्य कभी उससे उबर नहीं पाया। इसी दौरान, मुगलों का बेशकीमती मयूर सिंहासन (Peacock Throne) और विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा (Koh-i-Noor Diamond) भी नादिर शाह अपने साथ ईरान ले गया। यह घटना मुगल साम्राज्य के गौरव और धन के अंत का प्रतीक बन गई।
अहमद शाह के काल में गरीबी और अंतिम पतन की नींव
रंगीला बादशाह के बाद अहमद शाह (Ahmed Shah) गद्दी पर बैठे, लेकिन तब तक मुगल साम्राज्य पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था। रंगीला के शासनकाल में इतनी अधिक लूटपाट और कुप्रशासन हुआ कि अहमद शाह के काल में मुगलों को भीषण गरीबी का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने व्यक्तिगत सामान तक बेचने पड़े ताकि वे अपने प्रशासन को चला सकें।
मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ का शासनकाल वास्तव में मुगल साम्राज्य के गौरवशाली अंत का नहीं, बल्कि उसके दर्दनाक और शर्मनाक पतन की नींव था। उनकी भोगवादी और निकम्मी शासन शैली के कारण ही मुगल साम्राज्य कई टुकड़ों में बंटा, और बाहरी आक्रमणकारियों के लिए एक आसान शिकार बन गया। इतिहासकार मानते हैं कि मुगल शक्ति का वास्तविक अंत इसी ‘रंगीला’ दौर में हो गया था।