एक दौर था जब यह दुर्ग भी राजसी ठाठ का पर्याय हुआ करता था। मिट्टी एवं पत्थर की बेजोड़ कला से निर्मित इस दुर्ग का अधिकांश भाग जीर्ण अवस्था में हैं।
दुर्ग के भीतर घोटारू माता का मंदिर भी बना हुआ हैं जहाँ रोजाना सुबह शाम आरती का आयोजन किया जाता हैं, जिसमें आसपास रहने वाले पशुपालक रोजाना पहुंचते हैं।

घोटारु का ये किला किसी समय सिंध से जैसलमेर व देश की अन्य रियासतों के बीच व्यापार के दौरान व्यापारियों को सुरक्षा व अन्य सुविधाएँ देता था।
पास मे ही बना कुआँ मीठा पानी देता था ।आज किला व कुआं दोनो ही जर्जर है ।