1857 की क्रांति में राजस्थान के योगदान को सहेजेगी सरकार

1857 Ki Kranti: राजस्थान सरकार ने 1857 की क्रांति में राजस्थान के योगदान को सहेजने व सामने लाने की पहल की है। सरकार अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाले सभी वीरों से जुड़े स्थानों को ऐतिहासिक धरोहर वाले गांव घोषित कर वीरों की मूर्तियां लगाएगी। यह कार्य राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति बोर्ड को सौंपा गया है। इस दिशा में सरकार 1857 की क्रांति के दौरान आऊवा गांव में तोप से उड़ाए गए 24 बागी सैनिकों के रिकॉर्ड ढूंढ रही है, जिन पर डेथ पैनल्टी लगाई गई थी। इसके लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया तथा इंग्लैंड में संबंधित सभी दस्तावेजों को खंगाला जा रहा है। अंग्रेजी सरकार ने तोप से उड़ा दिए गए इन सैनिकों के नाम सार्वजनिक नहीं किए थे, इसलिए इनके वंशजों की भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

ओंकार लखावत, अध्यक्ष राजस्थान धरोहर संरक्षण बोर्ड ने बताया कि आऊवा केस में अंग्रेजों ने 24 क्रांतिवीरों पर डेथ पेनल्टी लगाई थी और कोर्ट मार्शल किया था। इसके सरकारी आदेश हमें मिल चुके हैं। परंतु ब्रिटिशकालीन सरकार ने मारे गए सैनिकों के नाम सार्वजनिक नहीं किए थे। अब हम इंग्लैंड की सरकार से इसकी मांग करेंगे।

सुगाली माता की मूर्ति फिर से बनेगी

जानकारी के अनुसार जनवरी-फरवरी 1958 में सेना के विद्रोह के बीच अंग्रेजों ने आऊवा में सुगाली माता की मूर्ति को नष्ट कर दिया था। राज्य सरकार अब माता सुगाली की मूर्ति को पुन: वैसा ही बनवाकर पूरे विधि-विधान के साथ स्थापित करेगी।

आऊवा विद्रोह का इतिहास

1857 में जब क्रांति की लपटें पूरे देश में फैल रही थीं, पाली जिले के एक छोटे से ठिकाने आऊवा ने फिरंगियों की जड़ें हिलाकर रख दी थीं। क्रांतिकारियों के सेनानायक के रूप में आऊवा ठाकुर खुशालसिंह की वीरता की कहानी आऊवा के कण कण में समाहित है।
1857 में जब ऐरनपुरा में सैन्य विद्रोह हुआ तब बागी सैनिकों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए आऊवा से होते हुए दिल्ली की तरफ कूच किया। जब इसकी सूचना आऊवा ठाकुर कुशालसिंह को मिली तो उन्होंने बागी सैनिकों को अपने यहां शरण दी। इससे नाराज होकर ब्रिटिश सेना ने जोधपुर सेना के साथ मिलकर आऊवा पर हमला कर किया। ठाकुर कुशाल सिंह ने जोधपुर पॉलिटिकल एजेंट मोक मेशन का सिर काट कर आऊवा किले की प्राचीर पर टांग दिया। इससे अंग्रेजी सेना आग बबूला हो गई और बंदूकों व तोपों से पूरे गांव को ध्वस्त कर दिया। यहां तक कि सुगाली माता की प्रतिमा को उखाड़ कर अपने साथ ले गए तथा लगभग 124 क्रांतिकारी सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया। जिनमें से 24 सैनिकों का जनवरी 1858 में अंग्रेजों ने डेथ पेनल्टी के अंतर्गत एनकाउंटर कर दिया।

डेथ पेनल्टी से पूर्व मुकदमा

24 जनवरी 1858 को 120 सैनिकों के विरुद्ध बगावत का मामला दर्ज किया गया। लेकिन 24 क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने का आरोप लगाते हुए एक दिन की न्यायिक कस्टडी में रखा गया। दूसरे ही दिन 25 जनवरी 1858 को 24 स्वतंत्रता सेनानियों को आऊवा की गलियों में तोपों व बंदूकों से छलनी कर दिया गया।

महत्वपूर्ण तथ्य

• 1857 की क्रांति में राजपूताने में अंग्रेजों को सर्वाधिक प्रतिरोध का सामना आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह चांपावत से करना पड़ा।
• आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह चांपावत की क्रांतिकारी सेना व जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह की सेना के बीच युद्ध हुआ, जिसमें आऊवा के सैनिक विजयी रहे।
• दूसरे युद्ध में आऊवा की सेना ने काला-गोरा युद्ध ( चेलावास युद्ध) 18 सितम्बर 1857 में ब्रिटिश सेना और जोधपुर रियासत की सम्मिलित सेनाओं को परास्त किया।
• काला गोरा युद्ध में एजेंट टू गवर्नर जनरल ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च पदाधिकारी जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस एवं जोधपुर पोलिटिकल एजेंट मैकमेसन ने भी भाग लिया था।
• काला गोरा युद्ध में मॉक मेंसन मारा गया। क्रांतिकारियों ने उसके कटे सिर को आऊवा दुर्ग के प्राचीर पर लटका दिया था।
• दोनों सेनाओं के मध्य 13 सितम्बर 1857 को बिठौड़ा में युद्ध हुआ। जिसमें कुशालसिंह चांपावत विजयी रहे।

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