राजस्थान (Rajasthan), अपनी अद्भुत रियासती विरासत और अदम्य साहस की कहानियों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ के किले (Forts) और महल सदियों से पर्यटकों और इतिहासकारों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। इन शानदार संरचनाओं में से एक, अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए सर्वोच्च स्थान रखने वाला चित्तौड़गढ़ का किला (Chittorgarh Fort), राजस्थान के सबसे ऊँचे किलों (Highest Forts in Rajasthan) में से एक है। यह केवल एक दुर्ग नहीं, बल्कि मेवाड़ के गौरव, राजपूतों के बलिदान और भारतीय स्थापत्य कला का एक जीवंत स्मारक है, जो सदियों से अपनी कहानी कहता आ रहा है। यह राजस्थान पर्यटन (Rajasthan Tourism) का एक प्रमुख केंद्र और भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
भौगोलिक श्रेष्ठता और सामरिक महत्व
चित्तौड़गढ़ का किला अरावली पर्वत श्रृंखला की एक एकाकी, लंबी और लगभग 180 मीटर (590 फीट) ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यह पहाड़ी लगभग 13 किलोमीटर (8 मील) के विशाल क्षेत्र में फैली हुई है, जो इसे केवल ऊँचा ही नहीं, बल्कि राजस्थान के सबसे बड़े किलों (Largest Forts in Rajasthan) में से एक भी बनाती है। इसकी ऊँची अवस्थिति इसे प्राकृतिक रूप से अभेद्य बनाती थी, जहाँ से शत्रु सेनाओं की गतिविधियों पर आसानी से नज़र रखी जा सकती थी। बनास नदी के उपजाऊ मैदान के पास स्थित होने के कारण यह किला जल और खाद्य संसाधनों के लिए भी महत्वपूर्ण था, जिससे यह कई सदियों तक मेवाड़ की राजधानी और शक्ति का केंद्र बना रहा। किले के सात प्रवेश द्वार और घुमावदार रास्ते इसकी सुरक्षा प्रणाली की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं। यह एक बेजोड़ स्थापत्य (Architecture) का उदाहरण है।
इतिहास के पन्नों में: पराक्रम और बलिदान की अमर गाथाएँ
चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh) का इतिहास, आठवीं शताब्दी में मौर्य शासकों द्वारा इसके निर्माण से लेकर मेवाड़ के गौरवशाली राजपूत वंश (Rajput Dynasty) के उदय तक फैला हुआ है। यह किला राजपूतों की आन-बान-शान का प्रतीक रहा है और इसने अपने अस्तित्व में तीन बड़े शाके (Saka – Mass Sacrifice) देखे हैं, जो इसकी भूमि को रक्त और बलिदान से पवित्र करते हैं:
- पहला शाका (First Saka, 1303 ई.): दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khalji) ने राजा रतन सिंह (Ratan Singh) के समय किले पर आक्रमण किया। इस भयावह युद्ध में, जब राजपूतों को हार निश्चित दिखी, तो राजा रतन सिंह के नेतृत्व में पुरुषों ने केसरिया बाना धारण कर रणभूमि में अपने प्राण न्योछावर कर दिए, जबकि रानी पद्मिनी (Rani Padmini) के नेतृत्व में हज़ारों वीरांगनाओं ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सामूहिक जौहर (Jauhar) किया। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे मार्मिक और प्रेरणादायक घटनाओं में से एक है।
- दूसरा शाका (Second Saka, 1535 ई.): इस बार गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह (Bahadur Shah) ने चित्तौड़गढ़ को घेर लिया। तत्कालीन शासक राणा विक्रमादित्य की माँ, रानी कर्णावती (Rani Karnavati) ने राजनैतिक दूरदर्शिता और अदम्य साहस का परिचय दिया। इस शाके में भी राजपूत योद्धाओं ने रावत बाघ सिंह (Rawat Bagh Singh) के नेतृत्व में केसरिया किया और रानी कर्णावती सहित लगभग 13,000 रानियों और महिलाओं ने जौहर कर अपनी अस्मिता की रक्षा की।
- तीसरा शाका (Third Saka, 1568 ई.): मुगल बादशाह अकबर (Akbar) ने इस किले को जीतने के लिए एक बड़ा सैन्य अभियान चलाया। इस युद्ध में जयमल राठौर (Jaimal Rathore) और पत्ता सिसोदिया (Patta Sisodia) जैसे महान योद्धाओं ने असाधारण शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अंतिम सांस तक किले की रक्षा की। अंततः, जब हार निकट दिखी, तो 7,000 राजपूतों ने केसरिया किया और किले की महिलाएं जौहर में कूद गईं। यह घटना चित्तौड़ की अजेय भावना का प्रतीक बन गई।
स्थापत्य सौंदर्य और प्रमुख आकर्षण
चित्तौड़गढ़ किला केवल अपने इतिहास के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है। यह एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल (Historical Site) है। किले के भीतर कई दर्शनीय स्थल हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं:
- विजय स्तम्भ (Vijay Stambh / Tower of Victory): महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) द्वारा 1448 ईस्वी में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया नौ मंजिला यह स्तम्भ 37.2 मीटर (122 फीट) ऊँचा है। इसकी प्रत्येक मंजिल पर हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं, जो इसे भारतीय मूर्तिकला का एक अनूठा उदाहरण बनाती हैं।
- कीर्ति स्तम्भ (Kirti Stambh / Tower of Fame): 12वीं शताब्दी में एक जैन व्यापारी द्वारा बनवाया गया यह सात मंजिला स्तम्भ 22 मीटर (72 फीट) ऊँचा है और जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (Adinath) को समर्पित है।
- रानी पद्मिनी का महल (Rani Padmini’s Palace): किले के दक्षिणी भाग में एक शांत जल निकाय के बीच स्थित यह महल ऐतिहासिक महत्व रखता है।
- कालिका माता मंदिर (Kalika Mata Temple): मूल रूप से 8वीं शताब्दी में एक सूर्य मंदिर के रूप में निर्मित यह मंदिर बाद में कालिका माता को समर्पित कर दिया गया।
- कुंभा महल (Kumbha Mahal): यह राणा कुंभा का विशाल आवासीय परिसर था, जिसमें मीराबाई का मंदिर भी स्थित है।
- गोमुख कुंड (Gaumukh Kund): एक प्राकृतिक झरने से भरा हुआ यह कुंड एक गाय के मुख के आकार का है और इसे पवित्र माना जाता है।
- सतबीस देवरी (Satbis Deori): यह 27 छोटे जैन मंदिरों का एक समूह है।
- जौहर स्थल (Jauhar Sthal): यह वह पवित्र स्थान है जहाँ रानियों और वीरांगनाओं ने जौहर कर अपने सम्मान की रक्षा की थी।
राजस्थान के गौरव का प्रतीक
चित्तौड़गढ़ का किला केवल अपनी भौतिक ऊंचाई या विशालता के कारण ही अद्वितीय नहीं है, बल्कि यह बलिदान, शौर्य, दृढ़ता और गौरव की एक सांस्कृतिक ऊंचाई का भी प्रतीक है। इसे UNESCO विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) के रूप में भी मान्यता प्राप्त है (राजस्थान के पहाड़ी किलों – Hill Forts of Rajasthan – के समूह के हिस्से के रूप में)। यह हर भारतीय के लिए एक प्रेरणा स्रोत है और पर्यटकों को राजस्थान के समृद्ध इतिहास और विरासत को अनुभव करने का एक बेजोड़ अवसर प्रदान करता है। चित्तौड़गढ़ का यह गौरवशाली किला वास्तव में राजस्थान के मस्तक का मुकुट है।