राजस्थान के राजनीतिक और सामाजिक जागरण में राजस्थान सेवा संघ (Rajasthan Seva Sangh) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। यह संगठन, जिसकी स्थापना 1919 में वर्धा (महाराष्ट्र) में हुई थी और बाद में 1920 में अजमेर (Ajmer) स्थानांतरित कर दिया गया, रियासती जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और ब्रिटिश शासन व जागीरदारों के अत्याचारों के विरुद्ध संगठित करने का एक प्रमुख माध्यम बना।
स्थापना और संस्थापक (Establishment and Founders)
राजस्थान सेवा संघ की स्थापना वर्ष 1919 में वर्धा, महाराष्ट्र में कुछ दूरदर्शी स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सुधारकों द्वारा की गई थी। इसके प्रमुख संस्थापकों में विजय सिंह पथिक (Vijay Singh Pathik, मूल नाम भूप सिंह), अर्जुनलाल सेठी (Arjunlal Sethi), और केसरी सिंह बारहठ (Kesari Singh Barhath) जैसे दिग्गज शामिल थे। इस संस्था को जमनालाल बजाज (Jamnalal Bajaj) जैसे दानदाताओं का वित्तीय सहयोग भी प्राप्त हुआ, जिन्होंने इसके कार्यों को गति प्रदान की। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की प्रेरणा भी इस संघ के गठन में एक महत्वपूर्ण कारक थी।
उद्देश्य और कार्यप्रणाली
राजस्थान सेवा संघ का मुख्य उद्देश्य जनता में राजनीतिक चेतना जागृत करना और उनकी कठिनाइयों, विशेषकर किसानों (Farmers) और आदिवासियों (Tribals) की समस्याओं को दूर करना था। इसका लक्ष्य जागीरदारों और जनता के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना, शासकों के न्यायोचित दावों का समर्थन करना और लोगों की शिकायतों का निवारण करना था।
संघ ने अपनी गतिविधियों को विभिन्न माध्यमों से आगे बढ़ाया:
- जनजागरण (Public Awareness): इसने जनता को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने के लिए पर्चे, समाचार पत्र और सभाओं का आयोजन किया।
- किसान आंदोलन (Peasant Movements): बिजौलिया (Bijolia), बेगूं (Begun), पारसोली, भिंडर, बस्सी और उदयपुर जैसे क्षेत्रों में किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ शक्तिशाली आंदोलनों का नेतृत्व किया। बिजौलिया किसान आंदोलन में इसकी भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय थी, जहाँ इसने किसानों को संगठित कर ऐतिहासिक सफलता दिलाई।
- बेगार प्रथा का विरोध (Protest against Begar System): रियासतों में व्याप्त बेगार (बंधुआ मजदूरी) प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई।
- देशी वस्तुओं को प्रोत्साहन (Promotion of Indigenous Goods): विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और खादी (Khadi) को बढ़ावा देने के लिए कार्य किया, जिससे स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement) को बल मिला।
- पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन (Publication of Periodicals): ‘राजस्थान केसरी’ (Rajasthan Kesari) नामक समाचार पत्र वर्धा से प्रकाशित किया गया। बाद में, जब संघ अजमेर स्थानांतरित हुआ, तो ‘नवीन राजस्थान’ (Naveen Rajasthan, जो बाद में ‘तरुण राजस्थान’ – Tarun Rajasthan के नाम से जाना गया) नामक साप्ताहिक पत्र अजमेर से निकाला गया। इन पत्रों ने जनता तक अपनी आवाज पहुंचाने और जनजागरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- शाखाओं का विस्तार (Expansion of Branches): अजमेर स्थानांतरण के बाद, संघ ने अपनी शाखाएं जोधपुर (Jodhpur), जयपुर (Jaipur), कोटा (Kota) और बूंदी (Bundi) सहित विभिन्न रियासतों में खोलीं, जिससे इसकी पहुंच और प्रभाव बढ़ा।
अजमेर स्थानांतरण और प्रभाव
1920 में, विजय सिंह पथिक के प्रयासों से राजस्थान सेवा संघ का मुख्यालय वर्धा से अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया। अजमेर उस समय राजपूताना (Rajputana) का एक केंद्रीय और महत्वपूर्ण स्थान था, जिससे संगठन को अपनी गतिविधियों को पूरे क्षेत्र में फैलाने में आसानी हुई। इस स्थानांतरण ने संघ को स्थानीय स्तर पर मजबूत पकड़ बनाने और विभिन्न किसान व जनजातीय आंदोलनों को प्रभावी ढंग से संचालित करने में मदद की।
विरासत और महत्व
राजस्थान सेवा संघ ने राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) की नींव रखने और लोगों में राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने न केवल किसानों और जनजातियों के हितों की रक्षा की, बल्कि रियासती शासन में सुधारों की मांग को भी मुखर किया। यह संगठन ब्रिटिश भारत और रियासतों के बीच जनता को एक मंच पर लाने का एक सफल प्रयास था, जिसने बाद के वर्षों में प्रजामंडल आंदोलनों (Prajamandal Movements) को भी प्रेरित किया।