- गवरी एक अर्ध संगीत और नाटकीय रूप से प्रदर्शित धार्मिक अनुष्ठान है जो विशेष रूप से मेवाड़ राजस्थान के भील जनजाति द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
- देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गवरी नृत्य एक वृत्त बनाकर और समूह में किया जाता है।
- इस नृत्य को सावन भादो माह में किया जाता है।
- गवरी का आयोजन रक्षाबंधन के दूसरे दिन से आरंभ होता हैं।
- इसे केवल पुरुषों के दुवारा किया जाता है।
- इस नृत्य में महिला का किरदार भी पुरुष उसकी वेशभूषा धारण कर निभाते हैं।
- इस नृत्य के माध्यम से कथाएँ प्रस्तुत की जाती है।
- गवरी का उदभव शिव-भस्मासुर की कथा से माना जाता है।
- इसमें शिव को “पुरिया” कहा जाता है।
- “गवरी” भगवान शिव की पत्नी, गौरी की देवी विकृत नाम है।
- गवरी की मान्यता भगवान शिव और भस्मासुर राक्षस की कथा से जुड़ी हुई हैं।
- गबरी में चार तरह के पात्र होते हैं- देवता, मनुष्य, राक्षस और पशु।
- गवरी के चालीस दिन तक भील अपने घर नहीं आते हैं।
- चालीस दिनों तक हरे साग सब्जी तथा मांस आदि का सेवन नहीं किया जाता हैं।
- एक गाँव से दूसरे गाँव बिना जूते के जाकर वहां नाचते हैं।
- एक गाँव के भील गवरी में उसी गाँव जाएगे जहाँ उसके गाँव की बेटी का ससुराल हो।
- गवरी के आखिरी दिन को गड़ावण-वळावण कहा जाता है।
- इसमें मांदल और थाली के प्रयोग के कारण इसे राई नृत्य के नाम से भी जाना जाता है।
Gavari Dance Video – गवरी नृत्य वीडियो